मुझे क्या अच्छा नहीं लगता
मुझे क्या अच्छा नहीं लगता


लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद: आ। चारुमति रामदास
अगर कोई चीज़ मुझे अच्छी नहीं लगती तो वो है दाँतों का इलाज करवाना। जैसे ही दाँतों वाली कुर्सी देखता हूँ, दिल एकदम दुनिया के दूसरे छोर पर भाग जाना चाहता है।
ये भी अच्छा नहीं लगता, कि जब मेहमान आते हैं और मुझे कुर्सी पर खड़े होकर कविताएँ सुनानी पड़ती हैं।
मुझे अच्छा नहीं लगता जब मम्मी और पापा थियेटर जाते हैं।
फेंटे हुए अंडे तो मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता, जब उन्हें गिलास में फेंटते हैं, उसमें ब्रेड के बारीक टुकड़े डालते हैं और ज़बर्दस्ती खिलाते हैं।
और ये भी अच्छा नहीं लगता कि मम्मा मेरे साथ घूमने निकलती है और उसे अचानक रोज़ा आंटी मिल जाती है!तब वो सिर्फ एक दूसरे से ही बातें करती रहती हैं, और मैं समझ ही नहीं पाता कि अब करूँ तो क्या करूँ।
नई ड्रेस में घूमना अच्छा नहीं लगता – मैं उसमें काठ की तरह हो जाता हूँ।
जब हम लाल सैनिकों और श्वेत सैनिकों का खेल खेलते हैं, तो मैं श्वेत सैनिक बनना पसन्द नहीं करता। तब मैं बस ख
ेल छोड़ कर भाग जाता हूँ! और जब मैं लाल सैनिक बनता हूँ, तो मैं कैदी बनना पसन्द नहीं करता। मैं कैसे भी भाग ही जाता हूँ।
जब मैं हारने लगता हूँ, तो मुझे अच्छा नहीं लगता।
जब जन्म दिन होता है, तब 'राऊण्ड-लोफ़' खेलना अच्छा नहीं लगता : मैं अब छोटा तो नहीं हूँ।
अच्छा नहीं लगता जब लड़के डींगे मारते हैं।और मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता, जब मेरी उँगली कट जाती है, और ऊपर से मरहम लगाना पड़ता है।
मुझे ये अच्छा नहीं लगता कि हमारा कॉरीडोर बहुत तंग है और बड़े लोग हर घड़ी इधर उधर दौड़ते रहते हैं, कोई बर्तन लिए होता है, या चाय की केतली, और चिल्लाते हैं:
"बच्चों, पैरों के बीच में मत घुसो! होशियार, मेरे हाथ में गरम-गरम बर्तन है!"
और जब मैं सोने के लिए लेटता हूँ, तो मुझे अच्छा नहीं लगता कि पड़ोस के कमरे में समूह में गाते है:
लिली के फूल,
लिली के फूल!!!
मुझे ये बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगती कि रेडियो पर लड़के और लड़कियाँ बड़े आदमियों जैसी आवाज़ों में बोलते हैं!।।।