Charumati Ramdas

Children Stories Fantasy Children

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मेरा दिमाग़ क्या सोचता है

मेरा दिमाग़ क्या सोचता है

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लेखिका: इरीना पिववारवा

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास  

 

अगर आप सोचते हैं कि मैं पढ़ाई में अच्छी हूँतो आप गलत हैं. मैं ठीक-ठाक पढ़ती हूँ. क्यों कि सब समझते हैं कि मैं होशियार हूँमगर आलसी हूँ. मुझे पता नहीं कि मैं होशियार हूँ या नहीं हूँ. मगर यह बात मुझे अच्छी तरह मालूम है कि मैं आलसी नहीं हूँ. मैं तीन घंटे तक होम-वर्क करती हूँ. जैसेमिसाल के तौर परअभी मैं बैठी हूँ और अपनी पूरी सामर्थ्य से सवाल हल करना चाहती हूँ. मगर वह हो ही नहीं रहा है. मैं मम्मा से कहती हूँ:

"मम्मामुझसे ये सवाल हल नहीं हो रहा है."

"आलसीपन मत कर," मम्मा कहती है. "अच्छी तरह से सोचऔर सब ठीक हो जायेगा. सिर्फ अच्छी तरह से सोचना!"

वह काम करने चली जाती है. और मैं अपना सिर दोनों हाथों में पकड़कर उससे कहती हूँ:

सोचमेरे दिमाग़. अच्छी तरह सोच... "दो आदमी पॉइंट से पॉइंट B की ओर पैदल चले..." मेरे दिमाग़तू क्यों नहीं सोच रहा हैअरेदिमाग़अरेसोचप्लीज़! अरेतेरा क्या जाता है!

खिड़की के बाहर छोटा सा बादल तैर रहा है. वह हल्का हैपंख की तरह. लोवह रुक गया. नहींतैर रहा है आगे.

दिमाग़तू क्या सोच रहा हैतुझे शरम नहीं आती!!!! "पॉइंट से पॉइंट B की ओर दो आदमी पैदल चले" ल्यूस्का भी शायद बाहर आ गई है. वह घूम रही है. अगर वह पहले मेरे पास आतीतो मैंबेशकउसे माफ़ कर देती. मगर क्या वह मेरे पास आयेगीइतनी चिपकू ?!

"पॉइंट से पॉइंट B की ओर..." नहींवह नहीं आयेगी. बल्किजब मैं बाहर कम्पाऊण्ड में निकलूँगीतो वह ल्येना का हाथ पकड़कर उसके साथ फुसफुसाने लगेगी. फिर वह कहेगी, "ल्येनामेरे घर चलमेरे पास कोई चीज़ है". वे चली जायेंगीफिर खिड़की की सिल पर बैठ जायेंगी और हँसती रहेंगी और बीज कुतरती रहेंगी.

"...पॉइंट से पॉइंट B की ओर दो आदमी चले पैदल..." और, मैं क्या कर रही हूँऔर तब मैं कोल्या कोपेत्का को और पाव्लिक को बुलाऊँगी क्रिकेट खेलने के लिये. और वह क्या करेगीआहावह रेकॉर्ड चलायेगी "तीन मोटे". और इतनी ज़ोर से कि कोल्यापेत्का और पाव्लिक सुनेंगे और भागकर उसके पास जायेंगेकहेंगे कि वह उन्हें भी सुनने दे. सौ बार सुन चुके हैं फिर भी उनका दिल नहीं भरता! और तब ल्यूस्का खिड़की बंद कर लेगीऔर वे सब वहाँ रेकॉर्ड सुनेंगे.

 "...पॉइंट से पॉइंट...पॉइंट..." और तब मैं सीधे उसकी खिड़की पर कुछ मारूँगी. काँच – झन्! – और उड़ जायेगा. वो भी जान ले!

तो. मैं सोचते-सोचते थक गई हूँ. सोचो या न सोचो – सवाल तो होने वाला नहीं है. ओहकितना ख़तरनाक सवाल है! चलोथोड़ी देर घूम लेती हूँ और फिर सोचूँगी.

मैंने अपनी नोटबुक बंद की और खिड़की से बाहर देखा. कम्पाऊण्ड में अकेली ल्यूस्का घूम रही थी. वह 'लंगडीखेल रही थी. मैं कम्पाऊण्ड में आई और बेंच पर बैठ गई. ल्यूस्का ने मेरी तरफ़ देखा भी नहीं.

"सिर्योझ्का! वीत्का!" अचानक ल्यूस्का चिल्लाई – चलोक्रिकेट खेलेंगे!"

कर्मानव भाईयों ने खिड़की से झाँककर देखा.

"हमारा गला ख़राब है," दोनों भाईयों ने भर्राये गले से कहा. "हमें बाहर निकलने की इजाज़त नहीं है."

"ल्येना!" ल्यूस्का चिल्लाई. "ल्येना! बाहर आ!"

ल्येना के बदले उसकी दादी ने बाहर देखा और ल्यूस्का को ऊँगली से धमकाया.

"पाव्लिक!" ल्यूस्का चिल्लाई.

खिड़की में कोई भी नहीं आया.

"पे-ए-ए-त्का!" ल्यूस्का और ज़ोर से चीख़ी.

"बच्चीअरेतू क्यों इतना चिल्ला रही है?!" छोटी सी खिड़की से किसी का सिर झांका. "बीमार इन्सान को आराम भी नहीं करने देते! चैन नहीं है!" और सिर वापस खिड़की में छुप गया.

ल्यूस्या ने तिरछी नज़र से मेरी ओर देखा और केंकड़े की तरह लाल हो गई. उसने अपनी चोटी खींची. फिर अपनी आस्तीन से धागा निकाला. फिर पेड़ की तरफ़ देखा और बोली:

"ल्यूसाचल लंगड़ी खेलते हैं".

"चल!" मैंने कहा.

हम कुछ देर लंगड़ी खेले और मैं घर चली आई अपना सवाल हल करने. जैसे ही मैं मेज़ पर बैठीमम्मा आ गई.

"तोसवाल हल हो गया?"

"नहीं हो रहा है."

"तू दो घंटे से उस पर अटकी बैठी है! ये सब क्या है! ख़तरनाक! बच्चों को इतने मुश्किल सवाल दे देते हैं! अच्छाचलदिखा अपना सवाल! शायदमैं कर दूँमैंने भी इन्स्टीट्यूट ख़त्म की है... तो... "...पॉइंट से पॉइंट B की ओर दो आदमी चले पैदल..." रुकरुकये सवाल तो मेरी पहचान का है! सुन! तूने ही तो पिछली बार पापा के साथ मिलकर उसे हल किया था! मुझे अच्छी तरह याद है!"

"क्या?" मुझे अचरज हुआ – सच में?...ओयसही मेंये पैंतालीसवाँ सवाल हैऔर हमें छियालीसवाँ दिया है."

अब मम्मा को बेहद गुस्सा आ गया.

"ये बेहद बुरी बात है!" मम्मा ने कहा. – "अनसुनी बात है! ये बदतमीज़ी है! तेरा दिमाग़ कहाँ है?! वह किस बारे में सोचता है?!"


   

   


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