मानव धर्म
मानव धर्म
कौशल जी ने एक छोटी कॉलोनी में अपना मकान खरीदा। पन्द्रह साल वे जिस मकान में किराए पर रहे , वह बहुत ही अच्छे इलाके में था । इस कॉलोनी में अभी उतनी आबादी नहीं हुई थी और आसपास ज्यादातर मुस्लिम घर थे। बच्चों को यह जगह बिल्कुल पसंद नहीं आ रही थी और उनकी धर्मपत्नी राधा तो अपने आसपास दूसरे धर्म के लोगों को देखकर वैसे ही उन से मुंह फुलाए थी। एक डेढ़ महीना तो उन्होंने आस पड़ोस में कोई संबंध ही नहीं रखा। उन्हें लगता था की इन लोगों का धर्म ,बोलचाल, रहन सहन ,खानपान सब हमसे अलग है तो इनसे बातचीत करें भी तो क्या ।लेकिन इंसान अपनी जरूरतें स्वयं ही पूरी कर ले तो उसे सामाजिक प्राणी कौन कहे? कौशल जी का समय अपने ऑफिस में कट जाता और बच्चों का आधा दिन स्कूल में,घर पर राधा ही अकेली रहती ।
एक दिन उनके पड़ोस में रहने वाली एक मुस्लिम महिला जिसका नाम नगमा था उनके घर आई और उन्हें नमस्कार किया। राधा को थोड़ा अजीब लगा कि वह उन्हें नमस्ते कर रही थी। उन्होंने भी औपचारिकतावश उसे बैठने के लिए कहा तो वह बैठ गई। बातों का सिलसिला चला तो राधा ने उनसे बच्चों के बारे में पूछा तो उसने बताया मेरे दो बेटे हैं सोनू, मोनू। राधा चौंकते हुए बोली "नगमा यह नाम तो हमारे यहां रखे जाते हैं।" तो वह हंसते हुए बोली "दीदी हम कौन से आपसे अलग हैं।"
राधा को उससे बात कर अच्छा लगा। एक दिन पड़ोस के घर से शादी का कार्ड आया। अगले दिन नगमा उनके घर आकर बोली "दीदी चलो, आज बान (हल्दी की रस्म) है न।" राधा को फिर आश्चर्य से हुआ। वह बोली "अरे तुम्हारे यहां भी ये रस्म होती है ?"
" आप चलो तो दीदी, इस बार आप हमारे यहां की शादी देखना। " राधा भी तैयार हो उसके साथ शादी वाले घर पहुंच गई। उसे अपने यहां और उनके यहां की रस्म में कोई अंतर नजर नहीं आया। "दीदी कल जल्दी तैयार हो जाना सुबह भात(मायके से भाई द्वारा शादी में दिए जाने वाला उपहार संबंधी रस्म) लिया जाएगा ।" अब तो राधा की दिलचस्पी इस शादी के लिए और बढ़ गई। उसने शादी में खूब बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। उसे लगा ही नहीं कि वह किसी दूसरे धर्म की शादी में आई हुई है। कौशल जी यह देख कर खुश थे कि अब उसका मन यहां लगने लगा है।
कौशल जी को अस्थमा की बीमारी थी और दिवाली के बाद हर साल बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण उनका अस्थमा बढ़ जाता था। वह इन दिनों कुछ दिनों की छुट्टी ले लेते थे। लेकिन इस बार घर बदलने के चक्कर में उनकी कई छुट्टियां हो गई थी तो ऑफिस वालों ने और ज्यादा छुट्टियां देने से इंकार कर दिया। लगातार इस प्रदूषण में बाहर निकलने पर उनकी हालत एक दिन देर रात ज्यादा खराब हो गई। राधा को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि नयी जगह है, उन्हें कहां लेकर जाए। कौशल जी की बिगड़ती तबीयत भी उससे देखी नहीं जा रही थी। उसने आधी रात नगमा को फोन मिला दिया। कुछ ही मिनटों में नगमा व उसके पति वहां पहुंच गए। नगमा बोली "दीदी आप फ़िक्र ना करो हमने एंबुलेंस को फोन कर दिया है और वह आती होगी।" दस मिनट में ही एंबुलेंस आ गई। नगमा ने कहा "दीदी आपके साथ यह भी अस्पताल जाएंगे। आप अकेले सब कैसे संभालोगी। बच्चों की फ़िक्र ना करें। मैं इनके साथ हूं।"
दो दिन के इलाज के बाद कौशल जी को छुट्टी मिल गई और वह घर आ गए। इन दो दिनों में नगमा ने उनके घर व बच्चों की देखभाल की व उसके पति ने अस्पताल में जिस चीज की जरूरत होती थी ,उसको पूरा किया। घर आकर राधा ने हाथ जोड़ उनसे कहा "अगर आप लोग ना होते तो पता नहीं इन को मैं कैसे संभाल पाती । आप दोनों का शुक्रिया कैसे अदा करूं। मेरे पास तो शब्द भी नहीं है। आपकी सेवा भावना देख मुझे अपनी छोटी सोच पर भी शर्म आ रही है।"
उनकी बात सुन नगमा बोली "दीदी यह तो हमारा पड़ोसी धर्म है। अगर हम एक दूसरे के काम ना आ सके तो इस जहां में आने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। खुदा तो सबका एक ही है। यह तो हमने अपनी तरफ से उसे अलग अलग नाम दे बांट दिया है और हम तो मानव धर्म को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं।"
"नगमा तुम लोगों का व्यवहार व विचार देख मेरे दिल के सारे मैल धुल गए हैं। हो सके तो मुझे माफ करना।"
कह राधा ने उसे गले लगा लिया।
