GAUROV PS Chauhan

Others

4.0  

GAUROV PS Chauhan

Others

माँ की यादें 2

माँ की यादें 2

5 mins
177


माँ की शादी पापा से होने पर वो हमारे घर की बहू बन कर आ चुकी थीं। दोनों घरों के रहन सहन में ज़मीन आसमान का अंतर था। माँ तालुके फैमिली से थीं, और पापा ज़मींदार फैमिली से belong करते थे। ये छोटा अंतर नहीं होता है बस ये समझ लें कि पापा अच्छे खाते पीते घर से थे। कोई वैभवशाली इतिहास नहीं था, कोई महल नहीं, कोई परी कथा नहीं, कोई बघ्घी नहीं कोई हाथी घोड़ा नहीं। बिल्कुल साधारण सम्पन्न परिवार था जिसमें उस ज़माने में भी ग्रेजुएट लोग मिलते थे। पढ़े लिखे परिवार के रूप में रुतबा था।


माँ शादी होकर अपने ससुराल यानी पापा के गांव आ गईं। माँ बताती थीं कि उस जमाने में भी पापा के यहाँ एक बड़ा सा कुआं व शौचालय घर के अंदर ही था। जिसे देखकर उनके जान में जान आ गई थी। माँ का कहना था कि उनके मायके को देखते हुए वहाँ का रहन सहन मोटा था। खाना पीना सब उनके सोंच से विपरीत था। ये सब देख कर वो एक बार तो सहम गईं थीं।

पापा के बाबा माँ के लिए विशेष स्नेह रखते थे। माँ को रोज़ दोपहर में उनको रामायण पढ़ कर सुनानी होती थी। इसके अलावा वो माँ को कोई परेशानी ना हो इसका भी ध्यान रखते थे। घर में काम करने वालों की कमी ना रहती थी मगर घर का खाना पीना दादी ही करती थीं उसमें वो किसी की मदद नहीं लेती थीं। दादी का स्वभाव तो आपसे बता ही चुका हूँ। वो बहुत अच्छी, दयालु, व मददगार थीं।

माँ का कहना था कि वो बहुत डरी हुई थीं क्योंकि उनको खाना बनाना नहीं आता था। और ससुराल में इससे सामना तो होना ही था। बाबा ने एक दिन फरमाइश कर ही दी कि बड़ी बहू से कहो कि मक्के की रोटी आज बनायें। माँ के बस प्राण नहीं निकले थे, रोनी सूरत ले कर बैठी थीं। दादी ने कहा बहुरिया आज तुमको बाबा के लिए रोटी बनानी है। फिर माँ की सूरत देखते ही जान गईं कि क्या बात हो सकती है।

दादी ने माँ को कभी बहू की तरह जाना ही नहीं था, बिटिया की तरह ही मानती थीं। जैसे ही आभास हुआ वो माँ को लेकर चौके में गईं और आगे से आगे सारा खाना बना कर रोटी वगैरह सब तैयार कर दी। बाबा के आने पर माँ ने थाली लगाकर परोस दी। बाबा ने थाली की सजावट से लेकर खाने तक की खूब जम कर तारीफ करी और ऐलान किया कि उनकी थाली व रोटी अब बड़की बहू ही करेंगी।

इसी के साथ दादी ने माँ की कूकरी क्लासेज अपनी देखरेख में शुरू करवा दी। माँ कहती थीं कि दादी इतनी तेज हर काम करती थीं कि कितनी भी तारीफ करी जाए कम है। माँ का कहना था कि दादी को कितना भी काम पड़ जाए वो बिना चिढ़चिढ़ेपन के सारा काम समेट देती थीं।

बाबा के कुर्ते में खोंचा लगने से बाँह पर थोड़ा सा फट गया। उन्होंने घर आकर माँ को बुलाकर कुर्ता दिया कि उसको ठीक कर दो। मैंने बताया ही था कि सिलाई कढ़ाई में माँ दक्ष थीं जब कुर्ता माँ ने वापस भिजवाया तो बाबा हैरान थे कि वो फटा कहाँ से था आखिर। बहुत ढेर सारा आशीर्वाद मिल गया माँ को।

समय बीतते देर नहीं लगती है, वो समय भी आ गया जब माँ को पापा के साथ उनकी नौकरी वाली जगह पर जाना था। माँ बहुत हँस कर बताती हैं कि जब पहली बार वो अपनी गृहस्थी सजा कर चौके तक पहुँची और चूल्हा देखकर पापा से बोलीं कि वो नहीं जला पायेंगी। पापा का मुंह देखने वाला था। माँ को चूल्हा जला कर दिए, सब्जी वगैरह बना कर फिर बोलीं आटा सानना नहीं आता है। फिर पिता जी ने वो भी कर के दिया तब कहीं जाकर खाना खाएं दोनों लोग।

माँ हंस के कहती कि एक ही दिन बाद ठाकुर स्टोव ले आये। और जल्दी से चिट्ठी लिख दी कि अम्मा तुम आ जाओ कुछ दिन के लिए। दादी कहती थीं कि असली ट्रेनिंग तो तब वो माँ को दे पाई थीं गांव में उन्होंने किसी को पता नही चलने दिया था कि बड़की खाना नहीं बना पाती थीं।

माँ की 2 ननद थीं जिसमें बड़ी बुआ से माँ की बहुत बनती थी, हमउम्र होना भी एक कारण था। बुआ बताती है कि वो कई साल माँ के साथ रहीं बिल्कुल माँ जैसा प्यार करती थीं भाभी। फिर माँ ने पहले बेटी को जन्म दिया अब उनका ज्यादा समय उस बच्ची के लिए होता तो बुआ को बड़ी जलन होती उमा दीदी से। 2-3 साल बाद कुछ तबीयत खराब हुई और उमा दीदी नहीं रहीं। घर में सबका मन बहुत खराब था। मगर बुआ कहती कुछ भी रहा हो हमें बहुत अच्छा लगा अंदर से कि भाभी फिर से उनकी हो जायेंगी। अब जब बताती हैं तो खिसिया जाती हैं। बुआ की शादी से पहले काम काज की ट्रेनिंग माँ ने ही दी थी।

बुआ माँ को सही मायनों में भाभी माँ का ही दर्ज़ा दे रखा था। माँ का उनकी ससुराल में बहुत मान था। सभी उन्हें बहुत प्यार करते थे। उनके देवर यानी हमारे चाचा लोग सब पापा से जितना भागते थे माँ से उतना ही दुलराते थे। जितनी बुआ थीं, चाचा थे, चाची लोग थीं, हमारे सारे भाई बहन सभी ताई जी के बहुत हिमायती थे। माँ सबको एक जैसा मानती भी थीं। उनको मैंने कभी पापा से किसी की शिकायत करते भी नहीं देखा सुना था। हाँ मदद ज़रूर कर देती थीं।

उनके सारे ससुर उनको अपनी बिटिया सा स्नेह करते थे। मैंने माँ को लेकर कभी किसी को लगाई बुझाई करते नहीं सुना था। ऐसी थीं हमारी माता रानी।

अब आपको ले चलते हैं उनके घर संसार की तरफ, जहाँ उनका सबसे ज्यादा समय बीता बिटियों की शादी करी, बेटों को ब्याहा, नाती नातिनों को खिलाया।

क्रमशः....



Rate this content
Log in