माँ की याद
माँ की याद
मैं मेरी माँ के बारे में बताता हूँ, वो सारी बातें भी जिनमें मेरी मौजूदगी नहीं रही और वो सारी बातें भी जिनका मैं साक्षी रहा हूँ।माँ अपने घर की सबसे दुलारी थीं।उनके 2 बड़े भाई, 1 बड़ी बहन व 2 छोटी बहनें थीं।उनके बताने के लिहाज से वो अपने बाबा की बहोत दुलारी थीं।
माँ एक सभ्रांत व कुलीन घराने से थीं, जहां पर उस जमाने में भी लोग उच्च शिक्षित थे।उनके मायके में रूढ़िवादिता नहीं थी।माँ की शिक्षा हालाँकि 8वीं तक ही थी, मगर वो उस हिसाब से कभी लगा नहीं कि इतनी ही पढ़ी लिखी हैं।माँ बताती हैं कि उनके बाबा उनके लिए हर तरह का साहित्य जुटाते थे।उनको रामायण, महाभारत, गीता के साथ साथ हिंदी साहित्य का अच्छा खासा ज्ञान था।खाना बनाने में उनकी निपुणता बेजोड़ थी।सिलाई कढ़ाई उनके लिए खेल जैसा था।हर काम इतने सधे ढंग से करती थीं कि मुझे आश्चर्य होता फिर माँ हैं सोच कर कि इसीलिये कर पाती होंगी।
माँ की इसी कुशलता से वो सभी की प्रिय थीं।माँ बताती हैं कि उनकी माँ यानी माँ की फूफू उन्हें सब सिखाती व बताती थीं, नानी का भी अपार स्नेह उन्हें मिला हुआ था।नाना बहोत सीधे व सरल स्वभाव के थे।मगर मैंने महसूस किया कि उनके जीवन में नाना का उतना प्रभाव नहीं था।पिता सब एक जैसे ही होते हैं नाना की दुलारी माँ की सबसे छोटी बहन थीं।
माँ अपने दोनों भाइयों की भी बहुत दुलारी थीं।जिसमें बड़े मामा का विशेष स्नेह था उनपर।उनकी बातों से मुझे अपने बड़े मामा से प्यार हो गया था।बड़े मामा को मैंने देखा नहीं था वो मेरे जन्म के साथ ही नहीं रहे थे।माँ को अक्सर बातों में कहते सुना था कि तेरे आने के साथ ही बड़े भैया नहीं रहे।मुझे कष्ट भी होता कि कहीं वो इसका जिम्मेदार मुझे तो नहीं मानती।समझदार होने पर पूछ ही लिया था कि आप ये क्यों कह देती हैं।इस पर उन्होंने बोला कि जिम्मेदार नहीं मानती हूँ मगर तेरे जन्म की बात पर मुझे उन का ना होना भी उतना ही सालता है।कैसे कोई भुला सकता है।
माँ की 2 भाभी भी थीं जाहिर है 2 भाई तो भाभी भी होंगी।बड़ी मामी के बारे में माँ बताती हैं कि वो बहोत बड़े व प्रतिष्ठित घराने से थीं, और उनको उसका अहसास बराबर रहता था।इकलौती संतान के नाते उनका एक पैर मायके व एक पैर ससुराल में होता था।पर भाभी की तरह कम उन्होंने माँ को माँ की तरह दुलार दिया।बहोत सारी व्यवहारिक बातचीत, आपसी समझ, माँ ने उन्हीं से सीखा।माँ बड़ी मामी का दर्ज़ा अलग तरह से बताती थीं।
मैं बड़ी मामी से कई बार मिल चुका था, बहोत स्नेह लुटाती थीं हम सब पर।गर्मी की छुट्टियां होते ही हम सब ज़बरदस्ती प्रोग्राम बना लेते थे नाना के यहां का।बड़ी मामी का दुलार तो खूब रहता था मगर उनसे डर लगता था।कभी बदमाशी करने पर हालांकि उन्होंने डांटा नहीं था पर वो डर हो सकता है माँ की बताई बातों की वजह से हो।मामा के ना रहने पर भी कभी एक पल के लिए नहीं लगा कि मामी हम सब को बर्दाश्त कर रहीं हैं।उनके चेहरे का तेज व आभा अलग ही थी।माँ की एक तरह से गुरु भी थीं।
माँ की छोटी भाभी या छोटी मामी वो उनसे उतनी ही विपरीत सरल, सहृदयी, व सच्ची थीं।माँ की पक्की सहेली थीं।साथ में हंसना बोलना खेलना सब उनके साथ होता था।बाग़ से अम्बिया मंगा कर खाना, ठिठोली करना, दोपहर भर खूब मजेदार बातों से सबके पेट मे दर्द कर देती थीं।छोटी मामी हम सब को भी अपनी दोस्त जैसी लगती थीं।उनके साथ बैठ कर बतलाने में बड़ा मज़ा आता था।उनके जैसी प्यार की बोली वाला मुझे दूसरा कोई ना मिला।माँ को भी उन्हीं के साथ मजाक करते देखा था, उनकी वो हंसी भुलाए नहीं भूलती थी।
बड़े मामा के बेटे वो भी हम सब को बहोत मानते थे, कभी ये नहीं लगा कि नाना, नानी, मामा नहीं हैं आगे से आगे उनका बुलावा आ जाता था।विदाई में सबको कपड़े पैसे बराबर देते हालांकि माँ मना करती थीं मगर भैया इतने प्यार व खुशी से करते थे कि हम सब उनके आगे कुछ बोल ही नहीं पाते थे।भैया का स्वभाव ऐसा था कि पापा के साथ भी, हम सब के साथ भी एक बराबर से खप जाते थे।बहोत ही दोस्ताना स्वभाव था।
भाभी उनका स्वभाव तो बिल्कुल माँ जैसा था, उतनी ही समझदार, शालीन व गुड़ी हैं।मेरा मन उनको देखने से कभी भरता ही नहीं है।उनको देखकर मुझे बहोत अच्छा लगता था।माँ उनकी बहोत तारीफ करती थीं।मेरे मन में भी भाभी की छवि हमेशा अलग ही रहती।माँ कहती भैया के लिए कि बदमशवे की किस्मत बहोत अच्छी है कि ऐसी सुंदर सुशील सलीकेदार बहू मिली है।आप सब को बता दूँ भैया भाभी की लव मैरिज थी।
ये तो रहा माँ के मायके का हाल, अब बढ़ते हैं उनकी ससुराल की तरफ।
क्रमशः...................................
