माइक्रो कहानियाँ
माइक्रो कहानियाँ


बहादुर साही
लेखक: डैनियल चार्म्स
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
मेज़ पर रखा था बक्सा.जानवर बक्से के पास आए, उसे चारों तरफ़ से देखने लगे, सूंघने लगे, चाटने लगे.
और बक्सा तो अचानक ---- एक, दो, तीन----और खुल गया.
और बक्से से ---एक, दो, तीन--- उछला साँप.डर गए जानवर और भागे इधर उधर.सिर्फ एक साही ही था, जो नहीं घबराया, झपटा साँप पर और ---एक दो तीन --- टुकड़े टुकड़े कर दिए साही ने.और फिर बैठ गया बक्से पर और चिल्लाया: “कुकडूँ कू!”
नहीं, ऐसे नहीं! साही चिल्लाया “ आव-आवाव !”
नहीं, ऐसे भी नहीं! सही चिल्लाया: “म्याँऊ – म्याऊँ म्याँऊ!”
नहीं, अभी भी ऐसे नहीं! मुझे भी नहीं मालूम कि कैसे.
कौन जानता है कि साही कैसे चिल्लाता है?
कॉडलिवर ऑइल
लेखक: डैनियल चार्म्स
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
एक बच्चे से हमने पूछा:
“सुन, वोवा, तू ये कॉडलिवर ऑइल कैसे पी सकता है? उसका स्वाद तो इतना बुरा होता है.”
“मगर जब मैं एक चम्मच कॉडलिवर ऑइल पीता हूँ , तो मम्मा मुझे हर बार एक कोपेक देती है,” वोवा ने कहा.
“तू उस कोपेक का क्या करता है?” हमने वोव्का से पूछा.
“मैं उसे अपनी गुल्लक में डाल देता हूँ,” वोवा ने कहा.
“फिर, उसके बाद क्या होता है ?” हमने वोवा से पूछा.
“ फिर जब मेरी गुल्लक में दो रूबल्स जमा हो जाते हैं,” वोवा ने कहा, “तो मम्मा उन्हें गुल्लक में से निकालती है और फिर से मेरे लिए कॉडलिवर ऑइल की शीशी खरीदती है.”
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दूध का दाँत
लेखक: डैनियल चार्म्स
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
एक छोटी सी बच्ची का दूध का दाँत सड़ने लगा था.ये तय किया गया कि इस बच्ची को दाँतों के डॉक्टर के पास ले जाएँगे जिससे वह उसका दूध का दाँत उख़ाड़ दे.एक बार ये बच्ची संपादकीय दफ़्तर में खड़ी थी; वो एक शेल्फ़ के पास खड़ी दर्द से दुहरी हुई जा रही थी.तब एक संपादिका ने बच्ची से पूछा कि वह ऐसी दुहरी क्यों हुई जा रही है, तो बच्ची ने जवाब दिया कि वह ऐसी इसलिए खड़ी है क्योंकि वह अपना दूध का दाँत निकलवाने से डर रही है, इसमें उसे बहुत दर्द होने वाला है.
और संपादिका ने पूछा:
“ अगर तेरे हाथ में कोई पिन चुभाई जाए तो क्या तुझे बहुत डर लगेगा?”बच्ची ने कहा:
“नहीं.”
संपादिका ने बच्ची के हाथ में पिन चुभाई और कहा कि दूध का दाँत निकालने में इस चुभन से ज़्यादा दर्द नहीं होता.
बच्ची ने विश्वास कर लिया और अपना बीमार दाँत उखड़वा लिया.इस संपादिका की सूझ बूझ की तारीफ़ करनी पड़ेगी!