कुछ अनजाना सा

कुछ अनजाना सा

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रोजी स्टेशन पर चुप चाप बैठी थी, पर उसके आँखो से आँसू बहे ही जा रहे थे, जो लाख रोकने के बाद भी नहीं रुक रहे थे। वो बार बार अपने आँसू पोछती और अपने आप को कोसती, क्यों नहीं उसने अपनी माँ की बात मानी। क्यों किसी के बहकावे में आ गई वो! क्यों इतनी कमजोर हो गई थी वो।

रोजी अपने पुराने दिनों में लौट गई। कॉलेज का आखिरी दिन जब सब अंतिम बार मिल रहे थे एक दूसरे से और पूरा दिन सब साथ मौज मस्ती करनेवाले थे। उसी में उसकी नज़दीकी राहुल से हो गई और पूरा दिन साथ बिताने के बाद अपना नंबर एक दूसरे को दिया और साथ मिलने का वादा भी।


दोनों मिलते मिलते कब एक दूसरे के नज़दीक आ गए और नज़दीकी कब बेडरूम पहुंच गई उन्हें भी पता नहीं चला। रोजी अकेले रहती थी मुम्बई में ...पढ़ाई पूरी कर के वापस जाना था, पर उसने इधर ही अब नौकरी करने की सोच ली थी। बहुत जल्दी दोनों को नौकरी भी मिल गई और दोनों अब साथ रहने लगे" लिव इन रिलेशनशिप"में। वो अपने संस्कार सब भूल चुकी थी उसने माँ को भी नहीं बताया। सोचा ..घर जाकर ही बताउंगी की हम शादी कर लेंगे कुछ दिनों में।


राहुल कुछ दिनों से बदला बदला था... रात को जल्दी आता और सुबह जल्दी चला भी जाता.. बात भी बस काम तक रोजी को कुछ समझ.. आए इससे पहले उसने जो देखा उसे आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। रेस्टोरेंट में राहुल किसी के साथ था। रोजी अपनी दोस्त के साथ कॉफी पीने आई थी। किसी लड़की का हाथ थामे वो कह रहा था .."मैं अकेला हूं बस तुम हाँ बोलो हम तुरंत ही शादी करेंगे" अब बहुत घूमना-फिरना हुआ अब हम साथ रहेंगे। राहुल ने रोजी को धोखे में रखा था। राहुल ने उसका इस्तेमाल किया बस.. छी उसे अपने आप से नफरत होने लगी। उसकी आँखें नम हो गई वो उल्टे पाँव वापस आ गई।

रोजी ने तुरंत अपना सामान पैकिंग किया और निकल गई स्टेशन अपनी माँ के पास, अपने परिवार के पास, जहाँ माँ के गोद में सर रखकर वो सुकून का पल बिता सके। हमेशा के लिए। उसे अपने आप पर शर्म आ रही थी, कैसे उसने अपने संस्कार की धज्जियाँ उड़ा दी थी! "लिव इन रिलेशनशिप"के चक्कर में। "माँ माफ करना मुझे माँ ".. रोजी की आँसू रुक ही नहीं रहे थे, तभी ट्रेन ने सीटी दी उसने अपने आँसू पोछे, और बढ़ गई नयी जिंदगी की तरफ अपने" लिव इन रिलेशनशिप को हमेशा के लिए "बॉय-बॉय"बोलकर। एक अनजान सफर की तरफ, कुछ अनजाना सा सफर पर एक नयी उम्मीद के साथ।


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