कशमकश
कशमकश
ममता- "मां मैं मीना के घर जा रही हूं।"
मां- "मीना के घर रोज -रोज क्या रखा है मीना के घर।"
ममता-. "मां आपको पता है वो अपनी कम्पनी चला रही है बहुत समझदार है मां मीना।"
मां- "अच्छा जी तो फिर तुम भी उसी कम्पनी में काम करने जा रही हो?"
"मां आप भी.. मैं क्यूँ करूंगी उसकी कम्पनी में काम ?मैं एक लेक्चरार हूं कम है क्या?"
मां -"तभी तो मैं कह हूं, मेरी बेटी तो खुद बहुत समझदार है उसे क्या जरूरत किसी के पास जाने की।"
ममता-. "मां आप भी ना… वो बहुत अच्छी है मेरी सहेली है बस. मुझे उसके पास जाना उससे बातें करना उससे सलाह लेना अच्छा लगता है ।"
ममता मां से कहते हुए "मां मैं जा रही हूं और ममता घर से निकल कर गाड़ी में बैठ गई। " लगभग एक घंटे का रास्ता था ममता के घर से मीना के आफिस तक का रास्ता।
ममता रास्ते में सोचने लगी क्या सच में मैं सिर्फ मीना से मिलने जाती हूं क्या वहां मुझे कोई और भी वजह है?वहां उसका भाई भी तो है उसका साथ भी तो मुझे अच्छा लगता है,मीना तो अक्सर अपने ही काम में व्यस्त रहती हैऔर वो मुझे अपने भाई से ही सलाह लेने को कहती है। क्या मुझे उसके भाई का साथ भी अच्छा लगने लगा ?.... शायद यही सच है।
दिल में कशमकश है वो भी वहीं होगा ना ....
