*कभी थमी नहीं .....
*कभी थमी नहीं .....
याद है मुझे वो दिन जब मैं कागज कलम लेकर बैठी थी ,तब मैं नौवीं कक्षा में थी ।
बचपन से किताबें पढ़कर ही आज इस जगह पहुंची हूं ,बस मन में चाह थी मुझे भी लेखक बनना है ।
क्योंकि विभिन्न लेखकों ने अलग - अलग विषयों पर इतना बेहतरीन लिखा है की आज उन लेखकों की किताबें पढ़कर, हम सब आगे बढ़ रहे हैं। ज्ञान का अमूल्य भंडार होती हैं विभिन्न विषयों पर लिखी किताबें ।
मेरी सबसे ज्यादा प्रिय कविता आदरणीय श्री माखन लाल चतुर्वेदी द्वारा रचित कविता 'पुष्प की अभिलाषा' कविता पढ़कर तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे , मैंने पुष्पों के पास जाकर देखा उन्हें जब -जब निहारा पुष्पों को समझना चाहा तो मन भावुक हो जाता ...
फिर प्रेरित होकर मैंने भी अपनी सर्वप्रथम कविता की रचना की
'मैं जो खिलता हूं' मेरी कविता का शीर्षक है,,,,
मैं जो खिलता हूं औरों के जीने के लिए
मेरी खुशबू से सारा आंगन महक जाता है,
मैं घर आंगन की शोभा बढ़ाता हूँ
सुख हो दुःख मैं जगह काम आता हूँ,
मैं पुष्प हूं छोटा सा जीवन है मेरा,
अपने छोटे से जीवन में अपना जीवन सफल कर जाता हूँ।
उसके बाद कुछ समाचार पत्रों में लिखा, कुछ सराहा गया , कुछ को नहीं भी ......लेकिन उसके बाद से लेखन की यात्रा निरंतर गतिमान है ।कभी रुक के कभी थम के कभी रफ्तार से लेखन यात्रा चल रही है ।
धन्य धन्य वो जिनकी प्रेरणा से मुझे लिखने की प्रेरणा मिली ।
