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Ashok Goyal

Others

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Ashok Goyal

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कभी जला जो मुहब्बत के आबशारों में।

कभी जला जो मुहब्बत के आबशारों में।

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कभी जला जो मुहब्बत के आबशारों में।

वो सब्ज़ सब्ज़ है सहरा के रेग्ज़ारों में।

मैं ख़ुशनसीब हूँ तू मिल गया ज़मीं पे मुझे।

तेरी तलाश थी मुझको कहीं सितारों में।

वो आसमां लिए फिरते हैं अपने सर पे मगर।

सहारा ढूँढते मिलते हैं बे सहारों में।

मुहब्बतों में तेरी उसका नूर दिखता है।

बहारे- रँगे-वफ़ा है तेरे इशारों में।

तू लाख परदों में रहकर भी यूँ नुमायाँ है।

तेरे करम का नज़ारा है इन नज़ारों में।

 


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