.... जीने का उम्मीद एक सपना....
.... जीने का उम्मीद एक सपना....
हर माता पिता को अपने बच्चों की चिंता होती है, उसके भविष्य को लेकर, और ऐसी ही चिंता आरोही के पिता को भी थी । 5 सालों से वह बिस्तर पर लेटी थी, ना कुछ बोलती थी और ना चलती थी । एक हादसे में उन्होंने अपना सब खो दिया अपनी पत्नी और बेटी को भी, आकाश बहुत साहसी था लेकिन अब उसका साहस , उसका विश्वास भी टूटता जा रहा था क्योंकि डॉक्टरों का कहना था ,आरोही कोमा में चली गई है और शायद ही ठीक होगी या फिर ठीक नहीं होगी यह सुन आकाश की उम्मीदें टूट गई 5 साल से जो उम्मीद थी अब उसको लगने लगा, शायद! आरोही कभी भी ठीक नहीं होगी , यह सोचते -सोचते ना जाने कब आंख लग गई, कुछ देर बाद गिलास गिरने की आवाज से उसकी नींद टूट गई और उसने देखा कि आरोही बिस्तर पर नहीं थी, यह देख वह हैरान हो गया और पूरे घर में ढूंढने लगा पर आरोही कहीं नहीं मिली । थक कर वह बैठ गया तभी पीछे से आरोही की आवाज आई.. पापा.. मैं यहां हूं.. आप इतने परेशान क्यों है?.. मैं ठीक हूं... और जैसे ही आकाश पीछे मुड़ा उसका हाथ गिलास में लगा और गिलास गिर गया और उसकी आंखें खुल गई, उसने देखा सामने आरोही थी, बिस्तर पर लेटी हुई, जो हल्का मुस्कुरा रही थी । शायद वो आकाश को विश्वास दिला रही थी, कि वो जल्दी ठीक हो जाएगी । आकाश को लगने लगा, कि शायद यह सपना हकीकत हो जाए, शायद सच में आरोही जल्द ठीक हो जाएगी । इस सपने से आकाश को विश्वास होने लगा कि हां! आरोही ठीक हो जाएगी और कहते हैं ना विश्वास पर तो दुनिया कायम है । यही विश्वास, यही सपना आकाश की जीने की उम्मीद बन गई क्योंकि सपने भी सच होते हैं बस थोड़ी मेहनत और लग्न की जरूरत होती है ।