इण्डियन फ़िल्म्स 2.7

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मैं और व्लादिक – लेखक...


रात के ग्यारह बज चुके हैं। मगर मैं और व्लादिक जाग रहे हैं। हम बड़े कमरे में मेज़ पे बैठे हैं, और अपनी नोटबुक्स से सिर नहीं उठा रहे हैं। हमारे ऊपर ढेर सारी प्लास्टिक की लटकनों वाला एक छोटा सा लैम्प जल रहा है, और कभी-कभी इस तरह के वाक्य सुनाई देते हैं: “मैं दूसरा भाग शुरू कर रहा हूँ” या “और मेरे पास दूसरे चैप्टर में प्यार के बारे में होगा”।

ये हम नॉवेल्स लिख रहे हैं। जब से व्लादिक पुरानी, भूरे रंग की नोटबुक लाया था, जिसमें एक छोटी सी कहानी : “सर्दियों की तैयारी” लिखी थी, मेरा मन ‘सैनिक’ खेलने को नहीं चाहता, और मैं प्लास्टीसिन से भी कुछ नहीं बनाना चाहता। पहले तो मुझे अचरज हुआ, कि मेरे दिमाग़ में ख़ुद ही ये ख़याल क्यों नहीं आया, कि एक नोटबुक ख़रीदकर उसमें जो चाहो वो लिखा जा सकता है, और फिर ‘लेखकपन’ मेरा सबसे फ़ेवरिट काम बन जाता – हाँ, बेशक, फुटबॉल को छोड़कर। बस, मैं सिर्फ ऐसी फ़ाल्तू बातें नहीं लिखता, जैसे “सर्दियों की तैयारी”। इस कहानी में सिर्फ यही बताया गया है, कि अपनी ‘स्की’ज़ को कैसे चिकना बनाना चाहिए, जिससे वे अच्छी तरफ फ़िसलें, और खिड़कियों को कैसे लुगदी से बंद करना चाहिए, जिससे हवा भीतर न आ सके। व्लादिक लिखता है, कि सबसे अच्छा तरीका है स्पंज से बंद करना। मगर ये दिलचस्प नहीं है, और सर्दियों की पूरी तैयारी व्लादिक ने सिर्फ डेढ़ पन्नों में लिख दी है! मैंने तय कर लिया, कि अगर लिखूँगा, तो एकदम नोवेल्स ही लिखूँगा।

मेरे पहले उपन्यास का शीर्षक है “भूले उपनाम वाला”। इसमें इस बारे में लिखा है, कि कैसे एक लड़का बहुत ‘बोर’ हो रहा था, वो हॉकी वाले सेक्शन में अपना नाम लिखवाने जा रहा था, मगर रास्ते में कुछ कैनेडियन्स ने उस पर हमला कर दिया, उसे खूब मारा, और वो अपनी याददाश्त खो बैठा। आख़िर में ये लड़का अपने नानू से मिलता है और उसकी याददाश्त वापस लौट आती है। व्लादिक, जिसने “सर्दियों की तैयारी” के बाद कुछ और नहीं लिखा है, मेरा नॉवेल पढ़ता है, और फिर हम एक साथ लिखने लगते हैं।

मैं तीन खण्डों का नॉवेल “इवान – शिकारी का पोता” शुरू करता हूँ, और व्लादिक एक थ्रिलर शुरू करता है “सबको ऐसा ही होना चाहिए”। जब तक वो अपना नॉवेल लिखता है, मैं न सिर्फ अपना तीन खण्डों वाला नॉवेल पूरा कर लेता हूँ, बल्कि एक छोटा सा नॉवेल “गद्दार” भी लिख लेता हूँ। फिर हम कई बार “एम्फ़िबियन्स" (भूजलचर मानव–अनु। ) नाम की फ़िल्म देखते हैं, और अचानक कई सारी किताबें तैयार हो जाती हैं। व्लादिक की – “किरण–मानव”, और मेरी – “वायु–मानव”, “चुम्बक-मानव” और “धातुई मानव”। किरण-मानव सिर्फ आँखों से किसी भी सतह को जला सकता है। वायु-मानव, अगर अपनी नाक में स्प्रिंग घुसा कर छींके, तो कोई भी भयानक चक्रवात ला सकता है। चुम्बक-मानव सोने को आकर्षित करता है, और धातुई मानव बस सिर्फ बेहद शक्तिशाली और बेहद भला है। और इन सारे मानवों का बदमाश लोग अपने नीच कारनामों के लिए उपयोग करना चाहते हैं, जिसमें, ज़ाहिर है, वे कामयाब नहीं हो पाते।

व्लादिक को अपनी किताबों में चित्र बनाना अच्छा लगता है, मगर मेरी ड्राइंग बुरी है, मगर मेरी नोटबुक के मुखपृष्ठ पर हमेशा मूल्य, प्रकाशन वर्ष, प्रतियों की संख्या और संक्षिप्त विवरण लिखा रहता है। उदाहरण के लिए “दस अविजित” नॉवेल का संक्षिप्त विवरण इस तरह से है: “ डाकुओं, समुद्री डाकुओं और अन्य लोगों के बारे में उपन्यास”। फिर मेरे सभी नॉवेल्स व्लादिक के नॉवेल्स से ज़्यादा बड़े हैं। मेरा सबसे छोटा नॉवेल “सीक्रेट प्लेस” ब्यानवे पृष्ठों का है, अगर अनुक्रमणिका को भी गिना जाए तो, और व्लादिक के नॉवेल्स पचास-पचास, चालीस-चालीस पृष्ठों के हैं। मेरे लिए ये बेहद ज़रूरी है, कि नॉवेल लम्बा हो और कई खण्ड़ों में हो, क्योंकि तब मुझे अनुक्रमणिका लिखना ख़ास तौर से अच्छा लगता है। कभी-कभी तो मैं पहले ही अध्यायों के शीर्षक सोच लेता हूँ, अनुक्रमणिका लिख लेता हूँ, और तभी नॉवेल की शुरूआत करता हूँ।

कुछ समय बाद व्लादिक ने लिखना बंद कर दिया, क्यों कि, “वैसे भी छपेगा तो कुछ भी नहीं”। पहले तो मैं व्लादिक से कहता हूँ, कि कभी न कभी तो छापेंगे ही, और अगर ना भी छापें, तो हमारी नोटबुक्स ख़ुद भी किसी किताब से कम नहीं हैं, क्योंकि वहाँ कीमत है, प्रतियों की संख्या है, मगर उसे किसी भी तरह मना नहीं सका।

अब मैं अकेला ही “बेलारूसी लोक कथाएँ” लिख रहा हूँ।


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