Vimla Jain

Children Stories Classics

4.5  

Vimla Jain

Children Stories Classics

हल्दी और सोंठ दो बहने

हल्दी और सोंठ दो बहने

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यह कहानी मेरे सभी ग्रांड चाइल्ड्स को बहुत पसंद है। बचपन में वे लोग बार-बार यह कहानी सुनने को बोलते थे, और मैं रोज ही करीब करीब उनको सुनाया करती। आज किड्स फेस्टिवल के लिए कहानी मुझे पता है आपकी शब्द सीमा से यह ज्यादा है मगर कहानी सीख देती हुई है इसीलिए इसमें शामिल करें।

दो बहने थी एक का नाम था हल्दी और एक का नाम था सोंठ ।दोनों के गुणों में रात दिन जितना अंतर था। हल्दी एकदम नम्र सबका काम कर देने वाली, सबका दिल जीत लेने वाली, मां बाप को बहुत सम्मान देने वाली, बहुत प्यारी लड़की थी।और सोंठ एकदम नकचढ़ी ,आलसी, लड़ाकू, और अपने आप में मस्त रहने वाली लड़की थी। वह मां बाप से भी लड़ती रहतीथी। इसी तरह समय बीता जा रहा था।

एक दिन हल्दी ने बोला "मां मां मैं मामा के घर जाऊं।" मां ने कहा "तेरा बहुत मन है तो सोठ को लेती जा ।"

सोठ ने मना कर दिया। "यह तो सब जगह काम करने लगती है , तो मुझे भी करना पड़ता है । मुझे नहीं जाना है उसके साथ ।"

तो मां ने कहा ठीक है " हल्दी तू अकेली चली जा।"

तो हल्दी अपने मामा के घर जाने को निकलती है रास्ते में उसको एक माली मिलता है। वह पेड़ के कुंडाले बना रहा होता है। वह माली के पास जाती है ,और उसको बोलती काका मैं आपकी मदद कर दूं। माली हां बोलता है। तो वह वहां से सब साफ सफाई करके और कुंडाले बनाने में उसकी मदद करती है ।

फिर वहां से जाने लगती है ,तो माली उसको बहुत सारे अमरुद देता है। और बहुत खुश होता है। बहुत आशीष देता है। फिर वह आगे जाती है तो उसे एक बुढ़िया मिलती है । वह बोलती है बेटी मुझे रास्ता पार करवा दे ।

हल्दी उसको पकड़ कर के उसकी लकड़ी पकड़ कर हाथ पकड़ कर उसको रास्ता पार करवाती है। और उसको उसके घर तक छोड़ कर आती है। बुढ़िया बहुत खुश होती है ,और उसको बहुत सारी चीजें देती है। थोड़ा खाने का भी देती है और खूब आशीष देती है । वह वहां से चली जाती है तो उसको रस्ते में एक दर्जी की दुकान मिलती है। दर्जी सिलाई कर रहा होता है ,मगर उससे सुई नहीं पिरोई जा रही होती है । वह देखती है और बोलती दर्जी काका दर्जी काका क्या मैं आपको सुई पिरो दूं। दर्जी तो खुश हो जाता है ,वह उसको सुई पिरो देती है ।और भी उसका छोटा मोटा काम कर देती है ।वहां से जाने लगती है तो दर्जी उसको एक सुंदर सा फ्रॉक देता है । बेटा तू बहुत अच्छी है ।यह फ्रॉक पहनना और इसी तरह लोगों की मदद करना। ऐसे करते करते हुए अपने मामा के घर पहुंच जाती है ।मामा के वहां बहुत दिन रहती है। सबके साथ में खूब हिल मिलकर रहती है । और बहुत मदद करती है। फिर वह अपने मां के घर जाने के लिए मामा को बोलती है। तो मामा और मामी उसको बहुत सारी गिफ्ट देते हैं। और खुशी-खुशी उसको विदा करते हैं। जब वह वापस अपने घर पहुंचती है। और अपनी मां को बहुत सारी गिफ्ट्स बताती है ।और रास्ते की सारी बातें सुनाती है।

वह सब सुनकर के और उसका सामानदेखकर सोंठ के मन में भी वहां जाने की इच्छा जागती है ।और वह बोलती है, मां मैं मामा के घर जाऊं। मैं भी बहुत सारी गिफ्ट लेकर आऊंगी। मां बोलती है जा पर तु वहां किसी से लड़ना मत ।और सब की मदद करना, और अच्छे से रहना ।और जब तक मन लगे ।

तब तक रहना और वापस आ जाना। तो वह अपने मामा के घर जाने के लिए निकलती है ।रस्ते के अंदर वही माली अपनी अमरूद की बाड़ी मे पेड़ के कुंडाले बना रहा होता है ।वह उसको देखता है तो सोचता है हल्दी है तो वह बोलता है आजा बेटा थोड़ी मदद कर दे । तो है वो बोलती है मैं क्यों मदद करूं तो माली बोलता है तेरे से पहले एक लड़की आई थी तेरे जैसी। उसने तो मेरी बहुत मदद करी थी । तो वह बोलती है वाह ही हल्दी फल्दी मैं हूं सठवां सूठ काम करूं तुम्हारी कमर दुखी जाए। तो माली कहता है भाग यहां से निकल मेरी वाडी से ।उसको वहां बैठने नहीं देता है और भगा देता है।

वह आगे जाती है तो उसको एक बुढ़िया मिलती है ।वह बोलती है मेरे को रास्ता पार करवा दे ।तो वह बुढ़िया को मना कर देती है। तो बढ़िया उस को डंडा दिखाती है।और बोलती है तेरे से पहले तो मेरे को एक तेरे जैसी लड़की ने बहुत मदद करी थी। वहां पर भी हो वैसे ही बोलती है । "वाही हल्दी फल्दि मैं हूं सठवा सूठ बहुत चालू तुम्हारा पग दुखी जाए।"

तो वह बुढ़िया उसको मारने के लिए डंडा उठाती है ।तब तक सोंठ वहां से भाग जाती है। आगे जाती है तो दर्जी को सुई की पिरोने की प्रॉब्लम होती है।

तो वह उसको देखते ही खुश हो जाता है। बोलता है ,आजा बेटा मेरे सुई पीरोदे । तो वह उससे भी बहुत खराब ढगं से बात करतीहै ।

तो दर्जी को गुस्सा आता है। यह बोलता है तेरे से पहले लड़की आई थी, तेरे जैसी बहुत अच्छी थी । उसने मेरी बहुत मदद करी । फिर वहां पर भी वह ऐसे ही बोलती है।

" वाही हल्दी फल्दि मैं हूं सठवासूठं

सुई पी रोवुंतो म्हारी आंखें फूटी जाए।"

दर्जी को बहुत गुस्सा आता है । और वह उसको भगा देता है।ऐसे करते करते हुए मामा के घर पहुंच जातीहै। मामा के यहां वह एक-दो दिन में ही सब से झगड़ा करने लगती है । और कोई काम में मदद नहीं करती है। और जब भी काम करने को कहते हैं , तो लड़ने लग जाती है तो वह लोग दो-तीन दिन में ही उसको भगा देते हैं। बोलते हैं जा तेरी बहन बहुत अच्छी थी। तू बहुत खराब है । और उसको कुछ गिफ्ट भी नहीं देते हैं। हर समय वही बोलती है

" वाही हल्दी पल्दि मैं हूं सठवा सुंठ

काम करूं तो मने थाक लागी जाए ।" मामा मामी तंग हो करके उसको वापस भेज देते हैं । और वह रोती रोती घर आती है ।जब मां उसको पूछती है कि तू ने लोगों की मदद करी तो वह मना करती है। से पूछती तूने मामा की मदद करी ।तो मना करती है। तब मां उसको समझाती है, की जो दूसरों की मदद करता है । और जो लोगों से अच्छा व्यवहार रखता है। लोग उसी से खुश होते हैं। लड़ने , झगड़ने और अकड़ने वाले लोगों से और किसी की मदद नहीं करने वाले लोगों से कोई खुश नहीं होता है। उसको ऐसे ही रोना पड़ता है। इसलिए तो आगे से ध्यान रखना सब की मदद करना।

सौठ के दिमाग में यह बात आ जाती है।और वह हां बोल कर सिर हिलाती है । और बोलती है हां मैं सबकी मदद करूंगी । और आप कहोगे जैसा करूंगी हल्दी जैसी बन के रहूंगी। तब तो लोग मुझको प्यार करेंगे ना ।इस तरह से एक नक चढ़ी लड़की सुधारने के रास्ते पर चल पड़ती है।



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