हाथी की सवारी
हाथी की सवारी
कलाकार
1. सूत्रधार
2. मुखिया बंदर
3. कबीरा बंदर
4. रोशन बंदर
5. काला हाथी
6. भालू
सूत्रधार : एक बार एक जंगल में बंदरों का एक झुंड रहता था। उस झुंड में बहुत सारे परिवार रहते थे। उनमें हमेशा ही एक दूसरे से आगे रहने की धुन सवार रहती थी। हर कोई उस झुंड में अपनी पहचान सबसे ऊपर बनाना चाहता था।
एक दिन झुंड में रोशन और कबीरा परिवार के बीच एक आम के पेड़ को लेकर लड़ाई हो गई। दरअसल, रोशन परिवार का एक बच्चे ने, कबीरा परिवार के एक आम के पेड़ से एक आम खा लिया था। इसी बात को लेकर उनके बीच झगड़ा हो गया। बात हाथा पाई तक पहुंच गई थी। झगड़ा सुलझाने के लिए वे लोग मुखिया के पास गए। इस पर मुखिया ने तुरंत सभा बुलाई।
सभा में दोनों परिवारों को आमने सामने खड़ा किया गया।
मुखिया : आप लोगों ने यह क्या लगा रखा ? झुंड की मान मर्यादा की कोई चिंता नहीं है, क्या? जंगल में अगर यह बात फैल गई, तो हमारे झुंड की कितनी बदनामी होगी। पूरे जंगल में जो इतने सालों से हमने इज्ज़त कमाई है, वह मिट्टी में मिल जायेगी।
सूत्रधार : मगर, वह लोग मुखिया जी कि बात भी सुन नहीं रहे थे।
कबीरा : तुमने मेरे पेड़ से फल तोड़े हैं, तुम माफी मांगो।
रोशन : तुम्हारे परिवार वालों ने मेरे बच्चे को मारा है, तुम माफ़ी मांगो।
कबीरा : नहीं, तुम..
मुखिया : चुप हो जाओ तुम दोनों। भगवान के लिए चुप हो जाओ।
सूत्रधार : मुखिया के चिल्लाने पर, दोनों चुप हो जाते हैं।
मुखिया : लगता है, यह मसला ऐसे नहीं हल होगा। आप दोनों को अपने परिवार की प्रतिष्ठा बनाने के लिए एक कार्य करना होगा और जो भी उसे पहले करेगा वह परिवार जीत जायेगा, और हारने वाला माफी मांगेगा।
कबीरा : मगर, करना क्या है।
रोशन : कुछ भी हो मैं तैयार हूं।
मुखिया : जो भी तुम में से काले हाथी की सवारी कर नदी पहले पार करेगा, वो ही विजेता माना जाएगा।
सूत्रधार : सभी झुंड वाले, हैरान हो जाते हैं। आपस में बात करने लगते हैं, आखिर काला हाथी तो हमेशा से बंदरों के खिलाफ़ रहा है। वो तो कभी किसी बंदर को अपने आस पास फटकने नहीं देता।
रोशन : मुझे मंजूर है।
कबीरा : तुम्हें मंजूर है, तो मैं भी तैयार हूं।
सूत्रधार : दोनों, जोश में हां तो कर देते हैं। परंतु, उनको यह समझ नहीं आता कि इसे करें कैसे। दोनों परिवार के लोग गहरी सोच में पड़ जाते हैं। अगले दिन सूरज निकलते ही, रोशन और कबीरा निकल पड़ते हैं। रोशन, काले हाथी के पास जाता है।
रोशन : हाथी महाराज, क्या मैं आपसे एक निवेदन कर सकता हूं। यदि आप मुझे अपनी पीठ पर बिठा कर नदी पार करवा दें, तो मैं आपको स्वादिष्ट आम खिलाऊंगा।
काला हाथी : (गुस्से में) अरे बंदर, तुम्हारी इतनी हिम्मत, जो मेरे सामने आ गए। मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगा।
सूत्रधार : गुस्से में कला हाथी रोशन के पीछे भागता है।
रोशन : अरे भाई, मैं तो मित्रता का प्रस्ताव लाया था। और तुम..
सूत्रधार : रोशन काले हाथी के पांव के नीचे आने से बड़ी मुश्किल से बचता है और तुरंत वहां से भाग जाता है।
दूसरी तरफ़, कबीरा, काले हाथी के दोस्त भालू से मिलने जाता है।
कबीरा : भालू भईया, मुझे आपकी मदद चाहिए।
भालू : हां, बोलो कबीरा, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं।
कबीरा : दरअसल, मुझे काले हाथी की पीठ पर बैठ कर नदी पार करनी है।
सूत्रधार : वह रोशन परिवार के साथ हुई लड़ाई के बारे में भालू को सब बताता है।
भालू : तुम तो जानते हो, काला हाथी, बंदरों से कितनी नफरत करता है। वह कभी नहीं मानेगा।
कबीरा : कोई तो उपाय होगा। मैं कुछ भी करने को तैयार हूं।
भालू : हां, एक काम कर सकते हो, लेकिन, बड़ा ही मुश्किल है।
कबीरा : आप बताओ, मैं कर लूंगा।
भालू : काले हाथी को उस ऊंची पहाड़ी के बेर बहुत पसंद हैं। एक बार वहां से एक पेड़ गिर गया था। जिसके साथ कुछ बेर भी नीचे आ गए। जब से काले हाथी ने वो बेर खाए हैं, तब से, उन्हें खाना के लिए, बहुत बार ऊपर जाने की कोशिश कर चुका है, पर चढ़ नहीं पाता। वो पहाड़ी खतरनाक सांपों से भरी हुई है। तुम कर पाओगे क्या?
कबीरा : अपने परिवार के मान सम्मान को बचाने के लिए, में कुछ भी करूंगा।
सूत्रधार : और वह, भालू का शुक्रिया कर, वहाँ से निकल जाता है।
दूसरी तरफ़, रोशन भी अपनी कोशिश जारी रखता है। काला हाथी एक दिन नदी में नहा रहा होता है। रोशन चुपके से उसकी पीठ पर चढ़ जाता है। तभी काला हाथी उसे गिरा देता है।
रोशन : आखिर तुम्हें तकलीफ क्या है। मुझे उस पार क्यों नहीं ले जाते।
काला हाथी : तुम सब बंदर, धोखे बाज़ हो। मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगा। भागो यहाँ से वरना मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं।
सूत्रधार : दरअसल, कुछ साल पहले काले हाथी को एक बंदर ने बेवकूफ बनाया था और उसका सारा खाना चोरी कर लिया। मुखिया ने उस बंदर को झुंड से निकाल दिया, फिर भी काले हाथी ने बंदरों को कभी माफ नहीं किया।
कुछ दिन बाद। कबीरा काले हाथी के पास आता है। भालू भी उसके साथ होता है।
कबीरा : हाथी जी, मैं आपके लिए एक उपहार लाया हूं, क्या आप इसे खाना पसंद करेंगे।
काला हाथी : अरे, वाह! बेर। मज़ा आ गया।
सूत्रधार : और वो जल्दी से कुछ बेर खा लेता है।
भालू : हाथी जी, कबीरा ने आपको खुश करने के लिए, अपनी जान को मुश्किल में डाला, और देखो इसको कितनी चोटें भी लगी हैं।
काला हाथी : कबीरा, में बहुत खुश हूं। जो चाहोगे, मैं तुम्हें दूंगा। बताओ?
कबीरा : बस आप मुझे अपनी पीठ पर बिठा कर नदी के उस पार ले जाओ।
सूत्रधार : अगले दिन सुबह, सारे बंदरों के सामने, कबीरा काले हाथी की पीठ पर बैठ कर नदी पार करता है। मुखिया काले हाथी के पास आता है, और कहता है,
मुखिया : हाथी जी, हम बहुत सालों से आप से माफी मांग रहे थे। मैंने यह शर्त इसीलिए रखी थी, क्योंकि में चाहता था, आपकी नाराजगी दूर कर सकूं। क्या आज आप हमें माफ करेंगे?
काला हाथी : कबीरा ने मेरा दिल जीत लिया है। इसलिए मैं आज से तुम सभी का दोस्त हूं।
रोशन : कबीरा भाई, मुझे माफ़ कर दो, मैं अपने और अपने परिवार की गलती कि तुम से क्षमा मांगता हूं।
कबीरा : कोई बात नहीं, रोशन।
सूत्रधार : और उसके बाद से सभी झुंड वाले एक साथ खुशी खुशी रहने लगे। काला हाथी भी उनकी खुशियों में शामिल होता।
तो बच्चों, इस कहानी से हमने क्या सीखा?
प्यार से किसी के भी दिल को जीता जा सकता है, जैसे कि कबीरा ने काले हाथी का दिल जीता।