गरीब की हाय
गरीब की हाय
एक गांव में एक साहूकार रहता था। वह बहुत ही शातिर था। मगर एक खासियत थी उसमें वह हमेशा हस्ता रहता और सब से विनम्रता से बात करता। ये बात उसकी, सब को बहुत पसंद आती और सब उसको एक सज्जन पुरुष मानते। सब को लगता कि वह उनके हित की बात करता है और कभी किसी को धोखा नहीं देगा। वह गांव में सभी को ऋण देता और बयाज भी काम लेता। सभी इस बात से खुश रहते और खुशी खुशी अपनी ज़मीन उसके पास गिरवी रख देते।
उसका एक दोस्त था, जिसका नाम था भारत। वह हमेशा उसके साथ रहता। उसकी हर काम में मदद करता। साहुकार भी उसके साथ बहुत खुश था। दोनो हमेशा एक साथ रहते। वह दोस्त साहुकार के कुछ काम भी करता। जिसके लिए उसको साहूकार कुछ पैसे देता। भारत उन पैसों को साहूकार के पास ही जमा करवा देता। यह सोच कर की वक्त पड़ने पर, उससे ले लेगा। दोनो खुशी से एक साथ रहते। गांव में भी सब खुश थे।
एक दिन भारत सुबह सुबह साहूकार के घर पहुँचा। भारत का एक करीबी रिश्तेदार शहर में बीमार पड़ गया और अस्पताल में था। भारत ने साहुकार को बताया कि उसको पैसे को जरूरत है अपने रिश्तेदार को बचाने के लिए। उसने अपने जमा किए हुए पैसे वापिस मांगे। मगर, साहूकार ने वह देने से साफ इंकार कर दिया और कहा कि भारत ने उसके पास कोई पैसे जमा नहीं किए। भारत समझ ही नहीं पाया। वो तो साहूकार को अपना दोस्त समझता था। मगर साहुकार तो पैसे का पीर निकला।
भारत बहुत परेशान हो गया। मगर उसे तो पैसों की सख्त जरूरत थी। उसने साहूकार को बहुत मिन्नत की मगर साहूकार नहीं माना। पैसे न मिलने से भारत बहुत दुखी हुआ लेकिन उस से भी ज्यादा उसको दुख इस बात का हुआ की उसका रिश्तेदार पैसे न मिलने की वजह से इलाज नहीं करवा पाया और उसने अस्पताल में ही दम तोड दिया।
साहूकार अपने लालच और धोखे की कमाई से बड़ा खुश था। उसने गांव के कई लोगों की जमीनें भी अपने नाम करवा ली थी। वह विनम्र था मगर एक लालच से भरा हुआ इंसान। उसको हमेशा लगता कि पैसा ही सबसे बड़ा पीर है।
वह अपने दोस्त को चंद सिक्कों के लालच में भूल गया। गांव वाले भी धीरे धीरे उसकी चाल समझ गए थे। लेकिन वो हंकार में था। वह जब भी अपने दोस्त के घर के सामने से गुजरता, तो मन ही मन खुश होता की उसने कैसे उसे बेवकूफ बना कर लूट लिया। भारत उसको देखता तो उसके चहरे पर उसके लिए कोई विचार नहीं होते। मगर एक दिन जब भारत ने साहूकार को एक गरीब को ऋण की रकम न चुकाने के लिए परिवार सहित उसके घर से निकली दिया और वो भी चंद रुपए के लिए। तो उससे रहा नहीं गया। और उसके मूंह से साहूकार के लिए बददुआ निकल गई।
कुछ दिन बाद, एक रात को साहूकार की हवेली में आग लग गई। वह सब से मदद मांगता रहा। मगर गांव में सब लोग उसकी हरकतों और चालों को अब समझ चुके थे। इसलिए कोई उसकी मदद को नहीं आया। उसने सब को पैसों का लालच भी दिया, मगर कुछ काम न आया। साहूकार भारत के पास गया। उसको अपनी दोस्ती का वास्ता दिया। भारत फिर पिघल गया, मासूम अब भी उसको समझ नहीं पाया। लेकिन जब तक वो आता, तब तक सब खत्म हो गया था। साहूकार की हवेली पूरी तरह से जल चुकी थी। उसका मेहनत और धोखे से कमाया सब पैसा और कागजात जल चुके थे।
साहूकार रोता रहा और इतना सब होने के बाद उसे समझ आया। असली सरमाया तो दोस्ती ही थी, जिस को चंद सिक्कों की लालच में उसने गवा दिया। वो दोस्त आज भी खड़ा था उसके पास, लेकिन गरीब की हाय, उसे ऐसी लगी की वो फिर उठ न पाया।
