बकरी के सात बच्चे और शेर
बकरी के सात बच्चे और शेर
कलाकार
सूत्रधार
बकरियों की माँ
बड़ा भाई
मोटा भाई
शेर
मुन्नी (सबसे छोटी बकरी)
मस्तू (चालाक भाई)
सूत्रधार: एक सुबह की बात है, सातों बकरियों के बच्चे अपनी माँ की मदद करने की लिए कुएँ से पानी ले कर आ रहे थे। उनकी माँ बच्चों की इस बात से बड़ी खुश थी। उसने अपने बच्चों को डिनर में बिरियानी खिलाने का वादा किया। घर पहुँच कर वो तुरंत बाजार के लिए निकल गई।
सबसे छोटी बकरी: भईया, क्या हम लोग कोई गेम खेलें।
बड़ा भाई: अरे हाँ, ये तो बढ़िया आईडिया है, मगर क्या खेलें।
सबसे छोटी बकरी: छुपन छुपाई, कैसा रहेगा।
मोटा भाई: हाँ, माँ भी नहीं है, हम बाहर जा के खेल सकते हैं।
बड़ा भाई: अरे नहीं याद है ना, वो भेड़िया जिसने हमें खा लिया था।
सबसे छोटी बकरी: लेकिन भईया, वो तो कुएँ में गिर गया था ना, अब वो कहाँ से आएगा। प्लीज, प्लीज, क्या आप अपनी छोटी बहन की इतनी सी बात नहीं मानेंगे।
बाकी सभी बकरे: हाँ भाई, मान जाओ ना, बहुत मजा आयेगा। प्लीज।
बड़ा भाई: ठीक है….चलो खेलते हैं। मैं गिनती करता हूँ, तुम लोग छुप जाओ।
सभी बकरे: चलो, चलो।
सूत्रधार: सभी बच्चे छुप जाते हैं। कोई पेड़ के पिछे, कोइ घर के पीछे, कोई कुएँ के साथ, दो भाई तो एक साथ पत्थरों के पीछे छुप गए, मगर सबसे छोटी बहन को कोई जगह ना मिली तो वो जंगल के थोड़ा अंदर चली गई।
बड़े भाई ने सब को ढूँढ लिया पर जब नन्ही बहन की बात आई तो वो कहीं नहीं मिली। सब भाई मिलकर उसे ढूँढने लगे, मगर उसका कुछ पता ना चला।
बड़ा भाई: अरे, मुन्नी कहाँ चली गई।
सभी भाई: मुन्नी, मुन्नी, कहाँ हो तुम।
मस्तू: रुको, मैं पेड़ के ऊपर से देखता हूँ।
सूत्रधार: सभी भाइयों में, ये सबसे चालाक और तेज था। पेड़ पर चढ़ जाता है। चारों तरफ देखता है, उसे मुन्नी कहीं नहीं मिलती। तभी उसे पहाड़ी पर एक शेर नज़र आता है। और ये क्या, मुन्नी को उसने उठा रखा है। घबरा कर नीचे आता है।
मस्तू: बड़े भईया, मुन्नी को शेर ले गया।
बड़ा भाई: अरे नहीं, इसीलिए मैं बाहर नहीं खेलना चाहता था। मगर तुम लोग सुनते कहाँ हो।
मस्तू: भईया, हमें वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए। मुन्नी को बचाने चलो।
मोटा भाई: मगर, हम उसे कैसे बचाएंगे। हम शेर का मुकाबला कैसे करेंगे।
मस्तू: वो सब रास्ते में सोच लेंगे। अभी जल्दी चलो।
सूत्रधार: सभी भाई, तुरंत निकल लेते हैं। कुछ दूर दौड़ते हुए जाने पर वे शेर के नजदीक पहुँच जाते हैं। मगर शेर उनके सामने अपनी गुफा में घुस जाता है।
मोटा भाई: अब क्या करें, वो तो गुफा में चला गया है।
मस्तू: बड़े भईया। मेरे पास एक तरकीब है। इधर मेरे पास आओ सब।
सूत्रधार: वो सभी भाइयों को अपनी तरकीब बताता है। सभी ध्यान से उसकी बात सुनते हैं। और फिर प्लान के मुताबिक, चालाक भाई को छोड़ सभी जंगल की तरफ चले जाते हैं। मस्तू गुफा के बाहर जाता है। आखिर प्लान है क्या? चलो देखें।
मस्तू: शेर जी, शेर जी।
शेर: कोन है, जो मेरी गुफा के बाहर चिल्ला रहा है। (यह बोलते हुए शेर ग़ुस्से से बाहर आता है)
कोन है, मेरे मुलायम मास खाने के समय तंग कर रहा है।
सूत्रधार: बाहर आकर, मस्तू को देख शेर खुश हो जाता है।
शेर: अरे वाह, एक और बकरे का बचा। मजा आ जाएगा। मेरा भोजन बनने के लिए आए हो।
मस्तू: शेर जी, हम नन्हें से बच्चों को खा कर आपका पेट भी ना भरेगा। क्यूँ ना आप, भालू का भोजन करें और कुछ दिन आराम से गुफा में आराम करें।
शेर: भालू, अरे वाह। (शेर के मुंह में पानी आ जाता है) मगर भालु मिलेगा कहाँ। पाँच साल हो गए, भालू के मुलायम मास को खाए हुए। लेकिन आज भी उसका स्वाद ताजा है।
मस्तू: शेर जी, बस वो बड़ा पेड़ देख रहें हैं। उस पेड़ के नीचे देखिए, भालू शहद खा रहा है। सोचिए, शहद खाने से और कितना स्वादिष्ट हो गया होगा, भालू।
सूत्रधार: शेर, मस्तू की बातों में फंस गया था। उसे लगा उसको स्वादिष्ट भोजन मिलेगा। और भालू के पीछे जाने लगा। और मस्तू, मुन्नी को निकालने गुफा के अंदर। तभी शेर को बकरी की याद आयी। उसे अंदर बन्द तो किया था, मगर।
शेर: तुम भी मेरे साथ चलो, भालू मिलेगा तभी तुम्हारी बहन को छोड़ूंगा।
मस्तू: अरे ये प्लान तो फेल हो गया। मगर नो फ़िकर, जब मस्तू है इधर।
शेर: क्या सोच रहे हो, चलो, अपनी बहन को बचाना नहीं है।
सूत्रधार: कुछ दूर चलने के बाद,
मस्तू: शेर जी, क्या मैं आपकी पीठ पर बैठ जाऊँ?
शेर: गुर्राते हुए, क्या तुम शेर की सवारी करोगे, हाँ।
मस्तू: अरे शेर जी, मेरी इतनी जुर्रत, शेर की सवारी, (मुस्कराते हुए), मैं तो बस सोच रहा था कि जल्दी आपका भोजन आपको मिल जाता।
शेर: ये बात है, तो आ जाओ मेरी पीठ पर।
सूत्रधार: शेर दोड़ कर भालू के पास जाने लगा। मस्तू शेर को रास्ते में कभी दायें और कभी बायें मोड़ता रहा। सवारी का जैसे आनंद ले रहा था। कुछ दूर दौड़ते हुए शेर थकने लगा।
मस्तू: शेर जी रुकिए मत, कहीं भालू चला गया तो मुझे मत बोलना।
शेर: हाँ, हाँ (हांफते हुए) पता है।
सूत्रधार: शेर दौड़ते रहा, मस्तू की चालाकी की वजह से, शेर थकने लगा था।
मस्तू: वो रहा भालू।
शेर: किधर?
मस्तू: बायें तरफ।
सूत्रधार: शेर बिना सोचे बायें मुड़ा, और धम, एक शिकारी के बनाए खड्डे में गिर जाता है। मस्तू, अपनी चतुराई से, शेर के ऊपर से छलांग लगा देता है, और खड्डे में गिरने से बच जाता है। शेर ग़ुस्से से गुर्राते हुए पंजा मिट्टी में पंजा मारता है। मगर, उसे पता चल गया था, कि वो अब नहीं बचेगा। सबसे बड़ा भाई, तब तक मुन्नी को ले आता है और बाकी भाई भी, भालू की खाल को निकाल शेर को देखने आ जाते हैं और खूब हँसते हैं।
सभी बच्चे खुशी खुशी अपने घर चले जाते हैं और घर जा के अपनी माँ को बताते हैं कि मस्तू के ने कैसे चतुराई से मुन्नी की जान बचाई।
