गुड़
गुड़
मोहन को बचपन से गुड़ खाने का बहुत शौक था। आते जाते जब उसे मौका मिलता डिब्बे में से गुड़ निकालना और मुंह में डाल लेना। थोड़ा खाना तो अपनी जगह ठीक है, लेकिन हमेशा उसकी लार गुड़ को देख कर टपकती रहती थी। माँ हमेशा कहती," जब देखो तब गुड़ के पीछे पड़े रहते हो हमेशा चीटियों की तरह। इतना गु़ड़ मत खाया करो, दांत भी खराब हो जाएंगे"। दांत खराब होने के बात तो उसको समझ आ जाती थी, लेकिन चीटियों की तरह पीछे पड़ने वाली बात उसको समझ नहीं आती थी।
एक दिन उसने देखा कि मम्मी घर में नहीं है उसने काफी सारा गुड निकाला और जाकर अपने तकिए के नीचे रख दिया, यह सोच कर कि आराम से रात को खाऊँगा। जैसे ही रात में सोने के लिए गया वह भूल गया था इस बात को कि उसने तकिए के नीचे गुड़ रखा हुआ है। वह बिस्तर पर लेट गया ।थोड़ी देर बाद उसे अपनी गर्दन के पास ,बाजू में यहाँ वहाँ खारिश होनी शुरू हुई और खारिश भी ऐसी कि वह सह नहीं पा रहा था । इधर उधर भी थोड़ा किया पर जब नहीं सह पाया तो जोर से चीखा । अचानक दर्द व खारिश से वो एकदम डर गया और उसे याद आया कि अरे उसने तो तकिए के नीचे गुड़ रखा था । उसे मम्मी की डाँट याद आई कि क्या हर वक्त चीटियों के जैसे गुड़ के पीछे पड़ा रहता है, जिस दिन काटेंगे ना तब समझ आएगा। वह और जोर से चिल्लाया । मम्मी उसकी आवाज सुनकर दौड़ के पास पहुँची तो हैरान रह गई कि तकिए के पास से बेड के ऊपर पूरी लाइन बनाकर चीटियों की लाइन लगी हुई थी। यह देखकर जो मोहन की चीख निकली उसने तो कभी सोचा भी नहीं था कि गुड़ और चींटी का इतना बड़ा रिश्ता होता है। एकदम से कानों को हाथ लगाए , मम्मी कभी नहीं, कभी नहीं खाऊँगा । उस दिन मम्मी ने जल्दी से उसके कपड़े बदलवाए और अपने पास सुलाया। मोहन की आँखों के सामने लाल चींटियों की लाईन आ रही थी। इस घटना के उसके बहुत ज्यादा गुड खाने की आदत छूट गई । जब भी मोहन की गुड़ खाने की इच्छा होती तो अपने हाथ को डिब्बे तक ले जाता हुआ वापस खींच लेता । तब माँ कहती ,"नहीं बेटा, थोड़ा सा तो ले लो।" पर वह मुस्कुरा कर भाग जाता
