गलती।

गलती।

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“हमें तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि अपने मोहल्ले में भी ऐसा कोई निकलेगा। सच किसी पर भरोसे का जमाना ही नहीं है।”


“और नहीं तो क्या। किसी के मन मे क्या कुछ गन्दगी भरी पड़ी है, किसी के चेहरे पर लिखा हुआ तो होता नही।”


“सच पूरे परिवार की इज्जत एक अकेले ने मिट्टी मे मिला कर रख दी। ऐसी औलाद से बेऔलाद ही रहना अच्छा। पहले तो इनको पाल-पोस कर बड़ा करो, फिर इनकी हरकतों से पूरे खानदान की इज्ज़त पर बट्टा लगते हुए देखते रहो।”


“सच मीना की तो जिंदगी ही बर्बाद हो गई। कितने अरमान थे बेचारी के कि लड़का पढ़ लिख कर कुछ बन जाये और अपनी जिम्मेदारी संभाल ले तो पिया के ब्याह की चिंता कुछ कम हो लेकिन यहाँ पर तो उलटा सवाल खड़ा हो गया। अब इससे ब्याह करेगा भी तो कौन?”


“अरे भई कोई उसके बारे मे भी तो सोचो जिसकी जिंदगी इस चक्कर मे खत्म हो गई। वैसे एक बात कहे, हमें तो लगता है कि इन दोनों का कोई चक्कर-वक्कर चल रहा होगा वरना बात यहाँ तक पहुँचती ही क्यों। अब जब इतनी छूट दे ही रखी थी बच्चों को तो नतीजे सामने आने ही थे।”


“खैर छोड़ो हमें क्या करना। जो जैसा करे वैसा भरे। हमें तो बस अपने बच्चों को इन सब झमेलों से दूर ही रखना होगा। पता नहीं क्या असर पड़ेगा हमारे बच्चों पर।”


“चलो अब शाम के खाने की तैयारी भी करनी है। पूरा दिन बर्बाद हो गया इस चक्कर मे। पता नही ऐसे लोगों को भगवान भेजते ही क्यों धरती पर। खैर भगवान की माया भगवान ही जाने। चलो अच्छा फिर काम निबटा कर मिलते है।”


और इसी के साथ यह सभा समाप्त हुई और सभी औरतें अपने-अपने घर को लौट गयीं। आज की यह सभा मोहल्ले में हुई नकुल की गिरफ्तारी के बारे मे थी जो कल सुबह ही की गई थी। नकुल पर आरोप था कि उसने अपने कॉलेज में पढ़ने वाली एक लड़की सुमेधा का रेप किया और फिर उसे मार दिया। इसमें उसके साथ उसके दो दोस्त करण और प्रतीक भी शामिल थे।

कल सुबह जब पुलिस ने इस मोहल्ले में कदम रखा था तभी सभी मोहल्ले वालों का मन किसी अनहोनी की आशंका से भर उठा था। फिर जब पुलिस जीप नीरज के घर के आगे जाकर रुकी तो मोहल्ले वालों के मन में अनगिनत सवाल उठने लगे कि ऐसा क्या हो गया जो पुलिस नकुल के घर पर आई।


नकुल की गिनती इस मोहल्ले के सबसे शरीफ और समझदार बच्चों मे होती थी। नकुल के पिता ओमप्रकाश एक प्राइवेट स्कूल के बस ड्राइवर थे। नकुल तब दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था जब उसके पिता की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। उसके बाद घर और बच्चों की सारी जिम्मेदारी मीना के कंधों पर आ गई। उसने बहुत मेहनत से नकुल और पिया की पढ़ाई के खर्च के साथ घर की रोजमर्रा की जरूरतों को संभाल लिया था। लगभग दो साल पहले अपनी जमापूंजी का प्रयोग नकुल को कॉलेज में एडमिशन दिलाया था। नकुल ने भी जी-जान से मेहनत करके राष्ट्रीय स्तर पर पहला स्थान प्राप्त किया था। उस दिन मीना ने पूरे मोहल्ले में अपने हाथों से बनाई मिठाई बांटी थी।


लेकिन जब पुलिस ने नकुल को गिरफ्तार किया तो मीना को एक झटका लगा। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि नकुल इतनी घिनौनी हरकत कर सकता है। धीरे-धीरे पुलिस की जाँच आगे बढ़ रही थी। 


मीना के सामने नकुल के व्यक्तित्व से जुड़े नए पहलू खुल रहे थे।

अपने पिता की मृत्यु से पहले ही नकुल गलत संगत में पड़कर चोरी करना, जेब काटना और रंगदारी जैसे कामों को अंजाम दे चुका था। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता था। जब उसने कॉलेज में एडमिशन लिया था तभी से उसकी दोस्ती कॉलेज के छात्र नेता और उसके कुछ समर्थकों से हो गई जो अंग तस्करी, मानव तस्करी, भू माफिया और ड्रग्स जैसे और भी कई गलत कामो में लिप्त थे।


कॉलेज में सभी लोग यह जानते थे कि नकुल और उसके दोस्तों के खिलाफ आवाज उठाने का नतीजा किसी को अपनी जान दे कर भुगतना पड़ सकता था इसलिए कोई भी उसके साथ दुश्मनी मोल नही लेना चाहता था। सभी लोग उसकी हरकतों से परेशान थे खासकर लड़कियां जो आए दिन छेड़खानी का शिकार हो रही थीं।

नकुल सुमेधा को बहुत पसंद करता था और उससे शादी करना चाहता था लेकिन सुमेधा किसी और को पसंद करती थी। उसने नकुल को यह कहकर मना कर दिया कि वह एक गुंडा है और वह एक गुंडे से शादी नहीं कर सकती।नकुल यह इंकार सह नहीं पाया और उस ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर इस घिनौने अपराध को अंजाम दे दिया। जब सुमेधा ने पुलिस के पास जाने की बात कही तो वे सब डर गए और उसकी हत्या कर दी।

मीना को अब समझ में आया कि जब वह घर खर्च के पैसों की कमी होने की बात करती थी तो नकुल उसे झट से पैसे निकाल कर दे दिया करता था और जब वह पूछा करती थी तो वह कहा करता था कि उसने कही पार्ट टाइम जॉब कर ली है और वहाँ पर वेतन बहुत ज्यादा है।


नकुल का अपराध साबित होने के बाद जब मीना उससे मिलने जेल गई तो यह देखकर हैरान रह गई कि नकुल के चेहरे पर शिकन तक नही थी।

जब नकुल से मीना ने पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया? तो उसका जवाब सुनकर चौंक गई मीना। वह कह रहा था-“ तुम्हें कोई राजमहल तो नसीब हुआ नहीं अच्छा बनकर जो मुझे इस तरह देखकर दुख कर रही हो। जब मेरा बाप अपनी पूरी तनख्वाह देकर भी मेरी जरूरत पूरी नही कर सकता था तो उसका रास्ता मैने निकाला, सही गलत जैसा भी मुझे रास्ता दिखा मैं चल दिया।”

“तुम और पिया तो अपना मन मारकर रह सकती थी लेकिन मैं नहीं। मुझे जो कुछ भी चाहिए होता वह मैं किसी भी कीमत पर लेकर ही रहता। फिर चाहे वो एक चीज हो या फिर इंसान और उस सुमेधा ने तो मुझे इंकार किया तो उसे मैं कैसे छोड़ देता?” उसकी आँखें गुस्से से उबल रही थी।


मीना की आँखों में उस समय वह दर्द था जिसे बताने के लिये शब्द कम पड़ गए थे। वह साँस थामकर बोली-“अगर तेरी जरूरतें पूरी नहीं हो रही थीं तो तुझे बताना चाहिए था। मैं कोशिश तो कर ही सकती थी लेकिन यह सब क्यों? इतना जहर कि किसी की जान तक की परवाह नहीं। अगर कल को पिया के साथ भी कुछ ऐसा ही हो जाएगा तब भी क्या तू यही सब कहेगा?”


नकुल का गुस्सा बढ़ गया- “तुमसे पिया की पढ़ाई का खर्चा तो हो नहीं रहा था और मेरी जरूरत पूरी कर देती, अगर तुम्हें भनक तक लग जाती तो तुम सीधे यहीं आती। तुम्हें बहुत शौक है ना दूसरों पर विश्वास करने का। लोग धोखा देते है और तुम विश्वास कर लेती हो। मैने भी धोखा दिया तो क्या हुआ। मैं तो तुम्हारा अपना हूँ।”

मीना के पास शब्द ही नहीं थे कि अब वो क्या जवाब दे इसलिए वह उलटे पैर लौट आई। अब उसके पास एक ही सवाल था- कि इन सब बातों के पीछे गलत कौन है- वह या उसका अंधविश्वास जो उसने नकुल पर किया था।



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