फ़रेबी दुनिया

फ़रेबी दुनिया

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दुनिया के बीच खुद की एक अलग पहचान बनाने का सपना लिए सांची अपने परिवार के खिलाफ जाकर बाहर की दुनिया में कदम रखती है, तो उसका कोई सहारा अपना नहीं होता। फिर भी वो हौसला करके आगे बढ़ने की कोशिश करती है, कुछ फरेबी लोग उससे झूठी सहानुभूति दिला उसे अपनी तरफ से एक मौका देते हैं कुछ कर दिखाने का।

सांची किसी की सच्चाई को न समझते हुए गैरों पर अपनों से भी ज्यादा विश्वास करने लगती है। जिन लोगों के साथ सांची मॉडलिंग का काम करती है उनके गलत इरादों से अंजान वो अपनी पूरी लगन व विश्वास से उनके बताये हर काम करती है।

सांची के मॉडलिंग में फ़ोटो मैग्जीन्स के फर्स्ट कवर पर आने लगते हैं तो सांची को अपने सारे सपने सच होते नज़र आते हैं। अब तो वो उन लोगों के बताये हर रास्ते पर चलने लगी। धीरे-धीरे सांची उनके इशारों पर नाचने वाली कठपुतली बन गई, जिसे वो लोग जब जैसे चाहे नचा सकते हैं, और सांची इससे खुश है कि कल तक जो उसके सपने थे आज वही हकीक़त बन रहे हैं पर इस बीच सांची को अपनों की कमी बहुत खलती है, उसका दिल करता है कि वो अपनी ये ख़ुशियाँ अपनों के साथ बांटे पर शायद उसके अपनों को उसकी ये ख़ुशियाँ मंज़ूर ही नहीं है, यही सोचकर वो अपने मन को समझा लेती है ।

एक दिन सांची को मॉडलिंग कॉन्टेस्ट के लिए दुबई जाने का मौका मिलता है, सांची बेहद उत्साहित होकर अपनी पूरी तैयारी के साथ दुबई पहुँचती है, एक अंजान जगह अंजान लोगों के बीच सांची खुद को असहज महसूस करती है मगर अपने सपनों की दुनिया को हकीक़त में बदलते देख सांची अपने मन के हर डर को भुला देती है, सांची के लिए आज का ये दिन सबसे खास है क्योंकि आज का ये मॉडलिंग कॉन्टेस्ट उसकी तक़दीर को बदल सकता है, खुली आँखों से सपनों की दुनिया को हकीक़त में जीने की कोशिश में लगी सांची को नहीं पता कि जिस कॉन्टेस्ट में वो पार्टीसिपेट करने जा रही है उसकी सारी मॉडल्स छोटे-छोटे शहरों से आई बार गर्ल्स हैं, ये कॉन्टेस्ट कराने वालों ने इन सभी को ख़रीद लिया है, और इन सभी के बीच सांची भी अब फँस चुकी है।

ये सच्चाई सांची को किसी तरह पता चलती है तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है, उसके सुनहरे सपनों की दुनिया एकदम धुँधली पड़ जाती है, सांची कैसे भी इस दल दल से बाहर निकलने को छटपटाती है मगर वो उन लोगों के बीच कुछ नहीं कर पाती, सांची को अपनों की एक बात याद आती है जो उसके परिवार छोड़ने पर सभी ने उससे कही थी कि..आज तू अपने सपनों की ख़ातिर अपनों को छोड़कर जा रही है पर ये याद रखना कि सपने भी तभी अपने बनते हैं जब किसी अपने का साथ हो।

दोस्तों अब आप सोचिए कि सांची के इस हाल का जिम्मेदार कौन है??? खुद सांची? या सांची के परिवार वाले???

अगर सांची के परिवार वालों ने उसका साथ दिया होता... या फिर सांची ही अपने सपनों में इतनी अंधी न हुई होती कि उसको सही गलत कुछ दिखाई नही दिया ।


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