एक सच ये भी

एक सच ये भी

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चल आ ना, ओह चिकने किधर जा रहा है। ये शब्द कानों में पड़ते ही दिलो दिमाग पर एक ऐसा साया छा जाता है , जिसको मर्द पाना तो चाहता है , लेकिन वो भी चोरी छिपे, डरता है समाज में अपनी इज्जत से चाहे वो पैसे देकर किसी की भी इज्जत उछाले या उसको चंद घंटो के लिए अपनी हवस के खेल को अंजाम देने के लिये एक सेक्स टॉय मात्र समझे। वो टॉय जो चंद रूपये की खातिर अपने जिस्म को ऐसे शख्स के हवाले कर देती है , जो अपनी वासनाओ की नंगी तलवार से उसके जिस्म को काट कर रख देता है। ऐसा एक बार नहीं, बार-बार , हर बार होता है। 
ऐसी ही एक घटना की ओर आपका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कारगार हुआ या नहीं ये तो आपके मस्तिक में उठे सवालो और विचारों के रूप में पता चलेगा |
"रानी" एक ऐसी लड़की की घटना है जिसको जब वैश्यावर्ति में लाया गया था तब उसको ये भी नहीं पता था मासिक धर्म किसे कहते है |आप अंदाजा लगा सकते है उसकी उम्र क्या रही होंगी , इस खतरनाक और घिनौने धंधे में लाने वाला और कोई नहीं उसका चाचा ही था , जो चंद नोटों के टुकड़ों के आगे मानवता को बेचने आया था। रानी के साथ सबसे पहला विश्वासघात उसके चाचा ने किया था , जो उसको शहर घुमाने के लिये लाया था और यही किसी कोठे पर बेच दिया था , उसको क्या पता था ये पहला धोखा नहीं है ,रानी उस वैश्यावर्ति के १०x १०  के कमरे को अपना घर समझ रही थी ,उसका ख्याल रखने और जरुरत के हिसाब से उसकी जरुरत पूरी करने वाली कोई और नहीं वहाँ की मुखिया शबनम थी। रानी इस बात से अनजान थी बकरीद से पहले जैसे बकरे को खिलाया पिलाया जाता है ताकि उसका गोश्त शानदार बन सके, और मजा आये , ऎसे ही रानी का ख्याल रखा जाता था। लेकिन फर्क इतना था बकरे को केवल एक बार हलाल किया जा सकता है और रानी को हर दिन और बार -बार। वो काला दिन आ चुका था जब रानी के साथ दूसरा विश्वासघात होने वाला था। शबनम ने उसको एक कमरे में जाने की और इशारा किया वो रोती रही , गिड़गिड़ाती रही लेकिन शबनम कहाँ  उस कसाई की तरह रुकने वाली थी ? उसको कमरे के अंदर धकेल दिया गया , जहाँ वासनाओ और हैवानियत से भरा शरीर उसका इंतज़ार कर रहा था , जहाँ एक ओर शास्त्रों ने यहाँ तक कह दिया है ,नर देह - नारायण देह, वहाँ ना नर था , ना ही नारायण , वहाँ तो बस अपनी वासनाओ के तेजाब से उस अनजान और पाप रहित रानी को जलाने वाला इंसान था। रानी की उम्र उस समय 18 वर्ष की रही होंगी ,और उस इंसान की जो उसके साथ वासनाओ का खेल खेलने आया था उसकी 45 वर्ष जो रानी के बाप की उम्र का था। साहब मुझको छोड़ दो ऐसा मत करो , रानी बार बार दोहराती रही वो हर बार उतनी तेजी से उसकी ओर बढ़ रहा था। चंद मिंटो में रानी की आत्मा और शरीर दोनों की जख्मी हो चुके थे।  शायद शरीर का जखम तो भर जाये लेकिन आत्मा का जखम ना भरने वाला था इंसान वासना के आगे ऐसा अँधा हो जाता है उसकी मर्यादा और मानवता दोनों वैश्यावर्ति के अड्डे के बाहर कूड़े के ढेर पर मिलते है। ये सिलसिला अब हर दिन यू ही चलता रहा ,बस चेहरे बदल जाते थे लेकिन हैवानियत वो ही रहती , शबनम जिसको, रानी ने माँ का दर्जा दिया था, उसको ममता और प्यार की खुश्बू से ज्यादा नोटों की खुश्बू प्यारी लगती थी , कुछ लड़कियाँ अपने रिहायसी शौक पूरा करने के लिये इस धंधे में आती है और अधिकतर रानी जैसी लड़की धकेल दी जाती है, वो भी उनके विश्वासपात्र लोगो के हाथो से ,लेकिन रानी ये ज्यादा दिनों तक सहन नहीं कर पाई और एक दिन अपने हाथ की नस काट कर इस दलदल से आजाद हो गयी , मरने के बाद उसके कमरे में कागज का एक टुकड़ा मिला जिस पर उसने अपनी तड़प ,बेचैनी और घुटन को उकेर कर रख दिया था
" जब में यहाँ लाई गई थी मेरी उम्र महज 8 साल थी , 8 साल मेने अपने परिवार के साथ खुशी से गुजारे थे लेकिन क्या पता था इस पर ग्रहण लगने वाला है ,जो ताउम्र मेरे जीवन में रहेगा। जब मेरे शरीर को पहली बार नोंच नोंच कर खाया गया था उस वक्त मेरी उम्र महज 18 साल थी।  जिस उम्र में औरत होने का आभास होता है ,जिंदगी में आगे बढ़ने के लिये कदम उठाये जाते है , मेने भी एक कदम उठाया लेकिन वो कदम कामयाबी की और नहीं उस अँधेरी दुनिया की और जहाँ जाने के रास्ते बहुत थे लेकिन वापस आने का रास्ता कोई नहीं था। 7 साल तक लगातार हैवानियत का शिकार होती रही दिन में कई बार , खाना भी नहीं मिलता था जब तक चार लोगो की हवस का शिकार ना बन जाऊं , हिम्मत करके मैंने कई बार भागने की कोशिश की हर बार नाकाम रही। लोगों से मेरी अपील है विश्वास और प्यार को बदनाम ना करो , आपके लिये चंद रुपयों का सौदा किसी की जिंदगी को ताउम्र बर्बाद कर सकता है ,पैसे तो चंद दिनों में खत्म हो जायेंगे ,लेकिन उसका खामियाजा वो लड़की मरने तक सहन करती रहेंगी ,जिसका सौदा इस वैश्यावर्ति में किया गया। आशा करुँगी ,कोई और रानी ना बने , शायद सरकार मानव तस्करी की ओर कुछ ठोस कदम उठाये। 
" जिंदगी से शिकायत बहुत थी , मिला जो भी मुक्कदर समझ लिया। 
बस तकलीफ तो इस बात की रही ऐ खुदा ,अपने -अपने ना रहे ,गैर तो पहले ही गैर थे "
बेबस रानी


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