दोस्त
दोस्त
क्या आपने कभी सोचा है कि जिनको हम अपना दोस्त कहते नहीं थकते वह हमारे दोस्त होते भी हैं या नहीं? कभी शान्ति से इस बात को गहराई से सोचा जाए तो इसका जवाब भी जरूर मिल जाएगा... जो शख्स हमारे खामोशी के ज़ुबान को न समझे, जो हमारे हार में खुद की हार न देखता हो, जो हमारे हँसते हुए चेहरे के पीछे के दर्द को न महसूस कर सके, वह भला हमारा हमदर्द या दोस्त कैसे हो सकता है, हां हो सकता है पर सिर्फ नाम के लिए... क्योंकि दोस्ती में छल कपट की कोई जगह नहीं होती, और वो दोस्त ही क्या जो आपके खामोशी के आवाज़ को ना सुन सके, जो आपके हँसते हुए चहरे के पीछे की चूभन को न महसूस कर सके... जो आपके हार में अपनी जीत देखता हो, वो आपका दोस्त तो हो ही नहीं सकता.. अगली बार किसी को दोस्त बोलने से पहले यह जरूर देख लिजियेगा कि वह सच में आपका दोस्त है या सिर्फ नाम मात्र?