धोखेबाज दोस्त
धोखेबाज दोस्त
कॉलेज में नया - नया एडमिशन हुआ था, मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत उत्साहित थी, क्योंकि मैं फ्रेंडली थी।
नए - नए दोस्त बनाना, उनसे मिलना जुलना, जल्दी ही विश्वास कर लेना मेरी आदत थी। बल्कि मेरी जो पुरानी फ्रेंड रहती थी साथ में, वह मना भी करती थी, कि इतनी जल्दी किसी पर विश्वास ठीक नहीं।
फिर फिर भी मैं उसकी बात नहीं मानती थी, वह हमेशा कहती थी, कि ! यह लोग तुम्हारे साथ धोखा कर रहे हैं।
फिर भी मैं हमेशा कहती, ऐसा कुछ नहीं है, तुम्हें कोई गलतफहमी हुई होगी।
ऐसे ही हम कुछ दिन साथ रहे, फिर ! उसके पापा का ट्रांसफर कहीं और हो गया। और वह अपने परिवार के साथ चली गई।
जाने से पहले वह एक बार मुझसे मिलकर, और मुझे चेतावनी देकर गई थी।
फिर भी मेरा निश्चल व्यवहार, यह स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि, जिसको हम दोस्त मान रहे हैं, वह हमारे साथ धोखा कर सकते हैं।
उसके जाने के कुछ दिन बाद, सभी दोस्त मिलकर लाइब्रेरी की किताब लिए, पढ़ने के लिए, और उसमें से कुछ पेज निकाल कर रख लिए, जब मैं किताब देने वापस गई तो, वहां किताब चेक करके रखा जा रहा था।
किताब चेक करने पर ! उसमें से पेज गायब निकले, तो उसका इल्जाम मेरे सर पर आ गया।
मुझे उसकी कही हुई बातें याद आने लगी, कि यह लोग दोस्त नहीं धोखेबाज है।
वैसे तो सीसीटीवी कैमरे की वजह से, मैं निर्दोष साबित हो गई, लेकिन ! तभी से मेरा दोस्ती से विश्वास ही उठ गया।
तब से आज तक, मैं दोस्ती पर, विश्वास नहीं कर पाती हूं।
जब से मंच से जुड़ी हूं, कुछ सहेलियों पर विश्वास हुआ, पर ! फिर भी डर लगता है।
क्योंकि :- विश्वास करते समय वही घटना याद आ जाती है।
"उम्मीद करती हूं, आप सभी सखियां ऐसे ही अपना साथ बनाएं रहेंगी, और मेरे विश्वास को टूटने नहीं देंगी।"
