बूढ़ी जादूगरनी (रूसी परीकथा)
बूढ़ी जादूगरनी (रूसी परीकथा)
एक समय की बात है, एक पति-पत्नी थे, और उनकी एक बेटी थी। पत्नी बीमार हुई और मर गई।
पति रोता रहा, रोता रहा और फिर उसने दूसरी औरत से शादी कर ली।
वह औरत बड़ी दुष्ट थी। वह बच्ची से प्यार नहीं करती थी, उसे मारती, डाँटती, सिर्फ यही सोचती कि कैसे उसे ख़तम कर दूँ।
एक बार बाप कहीं बाहर गया, और सौतेली माँ ने लड़की से कहा:
“जा, मेरी बहन, याने तेरी मौसी के पास जा, उससे सुई-धागा माँग ला – तेरे लिए कमीज़ सीना है।”
मगर ये मौसी जादूगरनी थी, हड्डी के पैर वाली। लड़की इनकार न कर सकी और चल पड़ी, मगर जाने से पहले अपनी सगी मौसी के घर गई।
“नमस्ते, मौसी!”
“नमस्ते, प्यारी! कैसे आई?”
“मुझे सौतेली माँ ने अपनी बहन के पास भेजा है सुई-धागा माँगने के लिए – मेरे लिए कमीज़ सीना चाहती है.”
“अच्छा किया, भाँजी, जो तू पहले मेरे पास आई,” मौसी बोली। “ये ले, तेरे लिए रिबन, मक्खन, डबल रोटी और माँस का टुकड़ा। वहाँ बर्च के पेड़ की टहनियाँ तेरी आँख़ों में चुभेंगी – तू उसे रिबन से बाँध देना; दरवाज़े चरमरायेंगे, भड़भड़ायेंगे, तुझे रोकेंगे – तू उनके कब्जों पर मक्खन लगा देना; तुझे कुत्ते काटने के लिए दौड़ेंगे – तू उनके सामने डबल रोटी फेंक देना, बिल्ला तेरी आँखें नोचेगा – तू उसे माँस का टुकड़ा देना.”
लड़की ने अपनी मौसी को धन्यवाद दिया और चल पड़ी.
चलते-चलते वह जंगल में पहुँची. जंगल में एक ऊँची बागड़ के पीछे एक झोपड़ी थी – मुर्गी की टाँगों पर, भेड़ों के सींगों पर, और झोपड़ी में बैठी थी दुष्ट जादूगरनी, हड्डी के पाँव वाली – बुन रही थी तिरपाल।
“नमस्ते, मौसी!” लड़की ने कहा।
“नमस्ते, भाँजी!” जादूगरनी बोली, “तुझे क्या चाहिए?”
“मुझे सौतेली माँ ने भेजा है तुम्हारे पास सुई और धागा माँगने के लिए – मेरे लिए कमीज़ सीना है।”
“अच्छा, भाँजी, तुझे सुई और धागा दूँगी, और तब तक तू यहाँ बैठकर थोड़ा काम कर!”
लड़की बैठ गई खिड़की के पास और बुनने लगी। और जादूगरनी झोपड़ी से बाहर निकलकर अपनी नौकरानी से बोली:
“मैं अभी सोने जा रही हूँ, और तू जाकर हम्माम गरमा और भाँजी को धो दे। देख, अच्छी तरह धोना, उठकर उसे खाऊँगी!”
लड़की ने ये बात सुन ली – अधमरी सी बैठी रही। जैसे ही जादूगरनी गई, वह नौकरानी से बिनती करने लगी :
“मेरी प्यारी! तू भट्टी में लकड़ियाँ उतनी न जला, जितना उन्हें पानी में भिगा, और पानी छलनी से भर-भर कर ला!” और उसे रूमाल उपहार में दिया।
नौकरानी भट्टी गर्म कर रही है, और जादूगरनी उठी, खिड़की के पास आई और पूछने लगी : “बुन रही है न तू, भाँजी, बुन रही है न, प्यारी?”
“बुन रही हूँ, मौसी, बुन रही हूँ, प्यारी!”
जादूगरनी फिर से सोने चली गई, और लड़की ने बिल्ले को माँस का टुकड़ा दिया और पूछा:
“बिल्ले-भाई, मुझे बताओ, यहाँ से भागूँ कैसे.”
बिल्ला बोला:
“देख, मेज़ पे है एक तौलिया और एक कंघी, उन्हें उठा ले और फ़ौरन भाग जा : वर्ना जादूगरनी खा जाएगी! जादूगरनी तेरे पीछे भागेगी – तू धरती से कान लगाना। जैसे ही सुनेगी कि वह पास आ गई है, कंघी फेंक देना – फ़ौरन ऊँघता हुआ घना जंग़ल प्रकट हो जाएगा। जब तक वह जंगल से बाहर निकलेगी, तू काफ़ी दूर भाग चुकी होगी। और फिर से पीछा करने की आवाज़ सुनेगी – तौलिया फेंक देना, फ़ौरन चौड़ी, गहरी नदी बहने लगेगी।”
“शुक्रिया, बिल्ले-भाई!” लड़की बोली.
उसने बिल्ले को धन्यवाद दिया, तौलिया और कंघी उठाई और भागी।
उसके ऊपर कुत्ते झपटे, उसे फाड़कर खा जाना चाहते थे, - उसने उन्हें ब्रेड दी। कुत्तों ने उसे जाने दिया।
दरवाज़े चरमराए, धड़ाम से बंद होना चाहते थे – मगर लड़की ने उनके कब्जों पर मक्खन डाला। उन्होंने भी उसे जाने दिया।
बर्च का पेड़ शोर मचाने लगा, उसकी आँखों पर मार करने लगा – लड़की ने रिबन से उसे बांध दिया। बर्च के पेड़ ने उसे जाने दिया। लड़की भागते हुए बाहर आई और अपनी पूरी ताकत से तीर की तरह भागी। भाग रही थी और इधर-उधर नहीं देख रही थी।
इस बीच बिल्ला खिड़की के पास बैठ गया और बुनने लगा। जितना बुनता, उससे ज़्यादा उलझाता!
जादूगरनी उठी और पूछने लगी :
“बुन रही है न, भाँजी, बुन रही है न प्यारी?” और बिल्ला जवाब देता है :
“बुन रही हूँ, मौसी, बुन रही हूँ, प्यारी।”
जादूगरनी झोपड़ी में घुसी और देखती क्या है – लड़की नहीं है, और बिल्ला, बुन रहा है।
जादूगरनी बिल्ले को डाँटने और मारने लगी:
“आह, तू बूढ़ा बदमाश! आह तू, दुष्ट! लड़की को क्यों जाने दिया? उसकी आँख़ें क्यों नहीं निकाल ली? उसका चेहरा क्यों नहीं नोच लिया?”
मगर बिल्ले ने जवाब दिया:
“मैं इत्ते साल से तेरी ख़िदमत कर रहा हूँ, तूने मुझे कभी एक कुतरी हुई हड्डी भी नहीं दी, जबकि उसने मुझे माँस का टुकड़ा दिया!”
जादूगरनी झोपड़ी से बाहर भागी, कुत्तों पर झपटी:
“लड़की को चीरा क्यों नहीं, उसे काटा क्यों नहीं?...”
कत्ते उससे बोले :
“हम इतने सालों से तेरी ख़िदमत कर रहे है, तूने कभी हमे रोटी की जली हुई परत भी नहीं फेंकी, मगर उसने हमें डबल रोटी दी!”
भागी जादूगरनी दरवाज़े के पास:
“चरमराए क्यों नहीं, भड़भड़ाए क्यों नहीं? लड़की को आँगन से बाहर क्यों जाने दिया?...”
दरवाज़े बोले:
“हम इत्ते सालों से तेरी ख़िदमत कर रहे है, तूने कभी हमारे कब्जों पर पानी भी नहीं डाला, जबकि वह मक्खन उँडेलने से भी नहीं हिचकिचाई!”
जादूगरनी उछलकर बर्च के पेड़ के पास आई:
“लड़की की आँखों में टहनियाँ क्यों नहीं चुभोई?”
बर्च के पेड़ ने जवाब दिया:
“मैं इत्ते सालों से तेरी ख़िदमत कर रहा हूँ, तूने कभी धागे से भी मुझे नहीं सँवारा, जबकि उसने मुझे रिबन भेंट में दे दी!”
जादूगरनी नौकरानी को डाँटने लगी:
“तू, ऐसी-वैसी, जाहिल-गँवार, मुझे क्यों नहीं उठाया, आवाज़ क्यों नहीं दी? उसे क्यों जाने दिया?...”
नौकरानी ने जवाब दिया:
“मैं इत्ते साल से तेरी ख़िदमत कर रही हूँ – तेरे मुँह से कभी एक भी प्यार का बोल नहीं सुना, जबकि उसने मुझे रूमाल दिया, प्यार से मुझसे बातें की!”
जादूगरनी खूब चीखी-चिल्लाई, फिर ओखली में बैठकर पीछा करने निकल पड़ी। मूसल से ओखली को हाँकती, झाड़ू से रास्ता बनाती...
और लड़की भागती रही-भागती रही, रुकी, ज़मीन से कान लगाया और सुना : ज़मीन थरथरा रही है, हिल रही है – जादूगरनी पीछा कर रही है, और बिल्कुल पास आ गई है... लड़की ने कंघी निकाली और उसे दाएँ कंधे से पीछे फेंक दिया। फ़ौरन एक जंगल प्रकट हो गया, ऊँघता हुआ और ऊँचा : पेड़ों की जड़ें ज़मीन के भीतर तीन फैदम (एक फैदम – 6 फीट गहराई) जा रही थी, उनके शिखर आसमान को छू रहे थे।
जादूगरनी वहाँ पहुँची, जंगल कुतरने और तोड़ने लगी। वह कुतरती रही, तोड़ती रही, और लड़की आगे भागती रही।
कुछ समय बाद लड़की ने फिर से कान ज़मीन से लगाया और सुना : ज़मीन थरथरा रही है, हिल रही है – जादूगरनी पीछा कर रही है, और बिल्कुल पास आ गई है।
लड़की ने तौलिया निकाला और दाएँ कंधे से पीछे फेंक दिया। फ़ौरन एक नदी बहने लगी – चौड़ी-खूब चौड़ी, गहरी – ख़ूब गहरी!
जादूगरनी नदी के पास आई, गुस्से से दाँत किटकिटाती रही – वह नदी के पार नहीं जा सकती थी।
वह घर वापस आई, अपने साँडों को नदी तक खदेड़ा:
“पिओ, मेरे साँडों! नदी का पूरा पानी पी जाओ!”
साँड पीने लगे, मगर नदी का पानी कम न हुआ।
जादूगरनी गुस्सा हो गई, किनारे पर लेट गई, ख़ुद ही पानी पीने लगी! पीती रही, पीती रही, पीती रही, तब तक पीती रही जब तक उसका पेट फ़ट न गया।
इस बीच लड़की भागती रही - भागती रही। शाम को बाप घर लौटा और बीवी से पूछने लगा:
“मेरी बेटी कहाँ है?”
सौतेली माँ बोली:
“मौसी के पास गई है – सुई-धागा लेने, किसी वजह से देर हो गई।”
बाप परेशान हो गया, बेटी को ढूँढ़ने निकलने ही वाला था, कि बेटी भागती हुई घर आई, उसकी साँस फूल रही थी, दम घुट रहा था।
“तू कहाँ गई थी, बेटी?” बाप ने पूछा।
“आह, बापू!” लड़की ने जवाब दिया। “मुझे सौतेली माँ ने अपनी बहन के पास भेजा था, मगर उसकी बहन तो जादूगरनी निकली, हड्डी के पैर वाली। वह मुझे खाना चाहती थी। बड़ी कोशिश करके मैं उससे छूट कर आई हूँ!”
बाप को जैसे ही यह सब पता चला, वह दुष्ट बीवी पर बेहद गुस्सा हुआ और उसे गंदी झाड़ू से मारते हुए घर से निकाल दिया और वह अपनी बेटी के साथ ख़ुशी से और प्यार से रहने लगा।