Alok Singh

Others

5.0  

Alok Singh

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बकैती -01

बकैती -01

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एक रात दिन के दरवाजे पर कुंडी लगाकर दफ्तर से सरकारी वाहन में अपने अस्थाई निवास की तरफ जा रहा था. चुनाव का माहौल चल रहा है अतः दीवारों ने अपना रंग बदलना शुरू कर दिया था कहीं कहीं तो इमारतों ने अपनी कायाकल्प कर ली थी...अबकी बार ....मेरी सरकार...अगली बार तेरी सरकार ....सरकार भाई वही सरकार जो अपना खून पीने को तैयार है ....वही सरकार जो खून पीकर मुँह पोंछ कर, डकार भी न लेकर बोलती है कि न भाई न.. मजा न आया इस खून में थोड़ा अमीरी की महक आरही थी ...थोड़ा और गरीब का खून लाओ क्योंकि गरीब के खून में मिलावट नहीं होती है ये अमीर साले दूसरों की ज़िन्दगी में मिलावट करते करते खुद की ज़िन्दगी में मिलावट कर बैठे और इनको खुद भी पता नहीं चल पा रहा है...इसलिए वो जो अपने पसीने को खून में खुद के मेहनत से बदलता है वो खून लाओ भाई क्योंकि वो जयदा चिल्लायेगा नहीं. शुद्ध चीज़ में आवाज नहीं होती है न ... सिर्फ चमक होती है इसलिए उस से इन जैसे नेतावो के जीवन में चमक बरकरार रहती है ... इसलिए गरीबो का और गरीब होना ज़रूरीइतनी रात में जब एक पहर चुप चाप अपने वर्तमान को दूसरे पहर के वर्तमान को समर्पण कर रहा था , उतनी रात में पार्टी कार्यकर्ता लोग हाथो में झंडा लेकर बड़ी बड़ी होर्डिंग्स लेकर जगह जगह पर अपने पार्टी के कथित मालिकों या यूँ कहूँ राजनीती के पवित्र जल में अपने विचारों की गंदगी को डालने वाले राजा महाराजा लोगो की चमक दमक वाली फोटो लगाने में पूरी ऊर्जा का निवेश कर रहे थे...निवेश इसलिए ...क्योंकि कल इन्ही पाखंडी नेताओं के नाम पर उनकी दुकान चलने वाली है और इनका ही क़र्ज़ उतारने के लिए नेता किसी भी स्तर तक गिर जायंगे...अरे भाई मज़बूरी है उनकी ऐसा करने के लिए....अगला चुनाऊ भी तो जीतना है....कलयुग में अच्छाई अपने पैर इतनी जल्दी नहीं फैला पाती है जितना बुऔर नेता लोग शायद महाभारत से सीख नहीं ले पाए हैं ....ये पार्टी कार्यकर्ता जो उनके राजनैतिक जीवन रथ के सारथी हैं उनके राजनैतिक जीवन की दिशा निर्धारित करने वाले हैं उनका सही होना उतना ही आवश्यक है जितना अर्जुन के रथ को संचालित करने के लिए कृष्ण का.. दिशा निर्धारित करने वाले का योग्य होना बहुत आवश्यक है क्योंकि अगर जीवन युद्ध में अगर योद्धा कुछ गलत निर्णय लेने की तरफ अग्रसर होता है तो सारथी उचित मार्गदर्शन करवा कर उसको कर्म मार्ग पर अग्रसर कर सकता है....पर ये भी एक सोची समझी चाल हो गयी है योद्धा खुद समझदार सारथी नहीं चाहता है क्योंकि वो नहीं चाहता है कि कोई उसको अपने हिसाब से चला सके ....अरे जनाब वो कथित मालिक है.. राजा राज्य करेगा न भाई....अगर प्रजा राज्य करने लगी तो राम राज्य नहीं आजायेगा ...प्रजातंत्र फिर से सांसे नहीं लेने लगेगा....इसलिए अनपढ़ और समाज का वो तबका जो भेंड़ चाल चल सकता है नेता रूपी योद्धा के लिए ज़रूरी है..अगर पढ़े लिखे होंगे ...समाज की परेशानियों से खुद को जोड़ने वाले होंगे तो ये रात रात भर होर्डिंग्स लगाने की जगह पर वो समाज की सेवा नहीं करने लगेंगे...नेतावो द्वारा पैदा की गयी परेशानियों की हटाने की कोशिश नहीं करने लगेंगे...देश बदलने नहीं लगेगा...रामराज्य का सपना साकार होने लगा तो नेता रूपी देवताओ का क्या होगा? इसलिए अज्ञानता की काली रात सिर्फ कागज पर ही कम होनी चाहिए..असलियत में किताबी ज्ञान के माध्यम से अगर कोई ऊपर निकल गया और समाज और इंसानियत के ज्ञान में पंडित हो गया तो राजनीती की परिभाषा बदल जाएगी इसलिए किताबो में वही बताओ जो उनके दिमाग में असुरछा की भावना को जाग्रत रख सके.यही सब सोचते सोचते मैंने भी आँखे बंद कर ली....सुबह की लालिमा ने आँखों पर चमक की जब बौछार की तब आँखों ने खिड़की के बाहर वही रात वाली होर्डिंग्स के दर्शन करके अपने आपको धन्य समझते हुए दिन के गलियारे में दौड़ने की तैयारी करने लगी.......मैं भी अपने जिस्म को ढ़ोने की तैयारी करने लगा ...क्या करूँ ज्ञान देना आसान है ...पर अमल करना मुश्किल...और ऊपर से दिमाग से बड़ा पेट जो है ...दिमाग भी सिर्फ उसी की सेवा करने का सिग्नल देता है..

#गुमशुदा" बकैत"..



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