बहू की खोज
बहू की खोज
क्या हुआ ज्योति, तुम्हारा मन कुछ ठीक नहीं लग रहा ? मैंने ज्योति से पूछा तो उसकी आंखों में आंसू आ गए। ज्योति मेरे बचपन की सहेली है और इत्तेफाक से हम दोनों की शादी एक ही शहर में हुई। ज्योति के पति दीपक एक सरकारी विभाग में इंजीनियर थे और बहुत ही हंसमुख एवं मिलनसार व्यक्ति है, दोनों की जोड़ी बहुत ही अच्छी है। ज्योति भी सरल वह शांत स्वभाव की और साथ ही एक सुघड़ गृहिणी भी है। शादी के 2 साल बाद ही उनको एक बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने दीपज्योत रखा। चांद सा बेटा पाकर दोनों की दुनिया जैसे संपूर्ण हो गई इसके बाद दूसरी संतान की उनकी इच्छा न थी। इसी बीच मेरी शादी भी अमित के साथ तय हो गई। संयोग से अमित भी रायपुर के थे जहां ज्योति और दीपक भी रहते थे। मैंने भी शादी के बाद रायपुर की ही एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली। दोनों सहेलियां एक ही शहर में होने के कारण हमारा मिलना होता रहता था। अपनी अपनी गृहस्थी में व्यस्त रहने के बावजूद भी हम अक्सर मिलते रहते थे। इसी बीच मुझे भी दो बेटियां हुई उधर दीपज्योत भी बड़ा हो रहा था। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाले दीपज्योत का एक अच्छे स्कूल और स्कूल के बाद एक अच्छे से कॉलेज में एडमिशन हो गया। ज्योति बहुत ही खुश थी, उसके सारे सपने पूरे हो रहे थे। कॉलेज के पूरा होने से पहले ही दीपज्योत को एक बहुत ही अच्छी कंपनी से नौकरी का ऑफर मिला और वह विदेश चला गया। 2 साल का बॉन्ड था,अब ज्योति चाहती थी कि एक अच्छी सी लड़की से दीपज्योत की शादी कर दी जाए जिससे कि वह अपनी इस जिम्मेदारी से मुक्त हो जाए। पहले तो वह मना करता रहा ,आखिर में उसने हां भर दी। कई सारी लड़कियां देखने के बाद प्रीति जो मेरे मामा की बेटी थी, वह पसंद आई। प्रीति जैसा कि नाम देखते ही प्रीति हो जाए ऐसी लड़की थी। पढ़ी लिखी, सुंदर, सुशील, घर के कामों में दक्ष साथ ही आज के जमाने के अनुसार स्मार्ट लड़की थी। दोनों के परिवार वालों ने मुलाकात की दीपज्योत व प्रीति की भी आपस में बातचीत हुई, दोनों ने हां भर दी और ना करने का तो कहीं कोई प्रश्न ही नहीं उठता था।
इधर ज्योति मेरी अच्छी सहेली और उधर प्रीति मेरी ममेरी बहन तो मुझे दोनों तरफ से शरीक होना ही था। अच्छा मुहूर्त देखकर दोनों की सगाई हो गई। अब दोनों की मुलाकातें होने लगी, बातें होने लगी। शादी में अभी एक महीना बाकी था कि एक दिन अचानक प्रीति का फोन आया, उसकी आवाज कुछ ठीक नहीं लग रही थी मैंने उससे पूछा तो बताया की दीपज्योत ने शादी से मना कर दिया है। मुझे तो बिल्कुल यकीन नहीं हो पा रहा था कि यह प्रीति क्या कह रही है। मैंने उससे तो ज्यादा कुछ नहीं पूछा, फोन रख कर ज्योति को फोन लगाया। ज्योति ने पहले तो कुछ नहीं बताया, बहुत पूछने पर बताया कि प्रीति की मम्मी को सफेद दाग है और यह बीमारी तो अनुवांशिक होती है ऐसे में कहीं प्रीति को भी सफेद दाग हो गए तो मेरा तो एक ही बेटा है उस पर क्या बीतेगी। मैं तो सुनकर अवाक रह गई यह तो तुम्हें पहले ही पता था ना ज्योति, तो उसी समय मना कर देती ना। अब प्रीति के दिल पर क्या बीतेगी? और दीपज्योत , क्या वह तैयार हो गया ? हां दीपज्योत तैयार है, ऐसा कह कर ज्योति ने फोन रख दिया। मैं तो बुरी तरह हिल गई। ऐसा कोई करता है क्या? अब प्रीति को कैसे संभाले ? खैर, आजकल बच्चे समझदार होते हैं। प्रीति ने जल्दी ही खुद को संभाल लिया, उसकी जल्दी ही नौकरी लग गई और वह उसमें व्यस्त हो गई। इधर ज्योति ने भी दीपज्योत की शादी हर्षा के साथ कर दी। 2 साल हो गए उसकी शादी को। मेरा भी अब ज्योति से मिलना कुछ कम हो गया था। आज अचानक ऑफिस से आते समय मुझे ज्योति की याद आ गई तो मैंने सोचा उससे मिलते हुए ही चलो। थोड़ी देर इधर उधर की बातचीत के बाद ज्योति कुछ अनमनी सी लग रही थी। पूछा तो रोने लगी, रोते रोते ही बताया कि दिलज्योत व हर्षा की आपस में बनती नहीं है इसी कारण दीपज्योत अब शराब भी पीने लगा है। हर्षा ज्योति के साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं करती, उसे आदर व सम्मान नहीं देती इसी कारण घर में कलह होती रहती है। हंसते खेलते परिवार को जैसे नजर लग गई हो, मैं उसे समझा बुझा कर घर चली आई पर रास्ते भर सोचती रही की ज्योति ने प्रीति के साथ सगाई तोड़कर अच्छा नहीं किया। एक लड़की के दिल पर क्या गुजरी होगी? उसके बारे में जरा भी नहीं सोचा? हो सकता है उसी की बददुआ दीपज्योत व हर्षा की गृहस्थी को लगी हो।
