बचपन की बारिश और काग़ज़ की नाव
बचपन की बारिश और काग़ज़ की नाव
बाहर बारिश फिर शुरू हो गई थी। फुहारें अंदर आकर वेदान्तिका के साथ ऑटो में अपनी जगह बना रही थीं। हवा और तेज हो गई थी जिसकी वजह से कान ठंडे हो गए तो उसने अपना दुप्पटा सिर पर लपेट लिया जिससे उसे थोड़ा आराम मिला। ऐसा करते हुए उसने बारिश के पानी में एक कागज की नाव को तैरते हुए देखा जो सामने की दुकान में बैठा हुआ बच्चा बना कर पानी मे डाल रहा था। ऐसा देखकर उसे अपना बचपन और बारिश की कुछ यादें ताजा हो गई।
दोपहर के बारह बज रहे थे। नानी के घर पर सब बच्चे पसरे पड़े थे। वेदान्तिका, मिट्ठू गिट्टी मियो सब एक दूसरे पर चढ़े पड़े थे। वेदान्तिका उठी और टीवी देखने के लिए चल पड़ी। सब बच्चे भी उसके पीछे चल पड़े।
जैसे ही वेदान्तिका ने टीवी ऑन किया, वैसे ही बत्ती गुल हो गई। वेदान्तिका गुस्से में बोली- “नही यार, शक्तिमान आने ही वाला था।”
गिट्टी बोली- “बाहर बारिश हो रही हैं इसलिए बिजली वालों ने बत्ती भगा दी है।”
“लेकिन अब हम क्या करें? मन नहीं लगेगा।” मिट्ठू और मियो का मुंह लटक गया।
तभी गिट्टी अंदर गई और अपने साथ कॉपी के कुछ पन्ने ले आई। यह देखकर सभी बच्चों के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
“चलो छत पर चलते हैं।” गिट्टी ने कहा और अपने साथ एक स्टील का टब ले आई। सब बच्चे छत पर थे अब।
छत पर बहुत पानी बरस रहा था। सभी बच्चे ने टब में पानी भरने के लिए उसे नीचे रखा और चर्चा शुरू की-“चलो अब नाव बनाते है।” मिट्ठू ने कहा
“लेकिन पन्ने गीले हो गए होंगे।” वेदान्तिका ने परेशान होकर कहा । गिट्टी ने प्लास्टिक की थैली निकाली और वेदान्तिका को दिखाई।
“परेशान होने की जरूरत नहीं है। ये है नाव वाले कागज चलो नाव बनाते है।” गिट्टी ने कहा।
“पर ये तो चार्ट पेपर हैं। किसी को पता चल गया तो कुटाई हो जाएगी।” मिट्ठू ने अपना अनुभव बताया।
“अरे कुछ नहीं होगा, अब चलो नाव बनाते हैं।” मियो ने बेफिक्री दिखाई तो सभी बच्चे सामने लगे टीन शेड के नीचे बैठकर नाव बनाने लगे।
