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Archana kochar Sugandha

Children Stories

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Archana kochar Sugandha

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बाल मनोविज्ञान असली चोर कौन

बाल मनोविज्ञान असली चोर कौन

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साहब मैंने चोरी नहीं की है, आप मुझे चोर न कहे,आप चाहे तो मेरे घर और सामान की तलाशी ले लीजिए। मैंने मेम साब की सोने की चेन नहीं चुराई है। मेरी बूढ़ी माँ तथा भाई - बहनों के पेट का सवाल है। घर का अठारह वर्षीय नौकर छोटू उर्फ विक्रम मेरे आगे गिड़गिड़ाए जा रहा था। लेकिन उसके चोरी के इल्ज़ाम की तहकीकात कराए बिना ही, उसे सौ प्रतिशत चोर घोषित करके मैंने उसे पुलिस के हवाले कर दिया। मेरा छह वर्षीय बेटा अभिनव जो छोटू के साथ काफी घुला-मिला हुआ था, अंदर तक हिल गया।

वो चैन घर में ही मिल गई, लेकिन नाक की ख़ातिर छोटू को जेल से रिहा नहीं करवाया। अभिनव अक्सर घर में हमें रिश्वत के पैसे लेते हुए देखता था । एक दिन उसका बाल सुलभ सवाल हमें अंदर तक कचोट गया। "पापा आपको हर रोज कोई न कोई सूटकेस में पैसे दे जाता हैं। साहब बीवी- बच्चों की लाचारी हैं, आप पैसे लेकर उनकी लाचारी दूर कर देते हो और वे हँसते-हँसते सबको मिठाई खिला कर, दुआएं देते चले जाते हैं। अगर छोटू भी आपको सूटकेस में पैसे भर कर दे देगा तो क्या आप उसकी भी लाचारी दूर कर दोगे?" अभिनव के सवाल ने मेरी आत्मा को झकझोर दिया और मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया, वास्तव में असली चोर कौन है ?



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