Garima Maurya

Children Stories

4  

Garima Maurya

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अहंकार

अहंकार

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एक गाँव में बूढ़े दंपत्ति रहा करते थे. संतान न होने के कारण वे दोनों बहुत दुखी थी. वक़्त गुजरता गया और उन्हें अकेलापन काटने लगा. एक दिन बूढ़े आदमी ने बूढ़ी दाई से कहा, “कब तक हम अकेले रहेंगे? अब मन नहीं लगता. घर काटने को दौड़ता है. क्यों न हम एक बकरी ले आयें?”


“ये तो बहुत अच्छी बात कही तुमने.” बूढ़ी दाई ख़ुश होकर बोली उसी दिन बूढ़ा बाज़ार गया और चार कौड़ी देकर एक बकरी ख़रीद लाया. चार कौड़ी में खरीदने के कारण उन्होंने उस बकरी का नाम “चारकौड़ी” रख दिया.


वे दोनों बकरी के घर आने से बहुत ख़ुश थे. उनका अधिकांश समय उसे खिलाने-पिलाने में बीतने लगा. वे कहीं भी जाते, चारकौड़ी उनके साथ जाती. वह उनके परिवार का हिस्सा बन गई थी.


लेकिन अधिक लाड़-प्यार का नतीज़ा ये हुआ कि चारकौड़ी मनमानी करने लगी. वह आस-पड़ोस के किसी भी घर में घुस जाती, उनकी बाड़ी की सब्जियाँ खा जाती, जिससे सारे पड़ोसी परेशान होने लगे. अब आये दिन पड़ोसियों की शिकायतें घर आने लगी. बूढ़ा आदमी और बूढ़ी दाई चारकौड़ी की शिकायतें सुन-सुनकर तंग आ गए.

एक दिन बूढ़े आदमी ने बूढ़ी दाई से कहा, “इसकी मनमानी बढ़ती जा रही है. इसे जंगल में छोड़ आता हूँ.”


बूढ़ी दाई को यह बात जंची नहीं, वह बोली, “इस बेचारी को जंगल में क्या छोड़ना. दिन भर घर में रहती है, इसलिए मनमौजी हो गई है. इसे अब राउत के साथ चरने भेज दिया करेंगे. दिन भर जंगल में रहेगी, शाम को घर आ जायेगी. घर पर कम रहेगी, तो किसी को परेशान भी नहीं करेगी.”


बूढ़ा मान गया और ऊसी दिन राउत से जाकर चारकौड़ी को चराने की बात कर ली. अगले दिन से राउत चारकौड़ी को जंगल में चराने ले जाने लगा. लेकिन कुछ ही दिनों में वह उससे परेशान हो गया, क्योंकि वह उसकी कोई बात नहीं सुनती थी. इधर-उधर भागती रहती थी. आखिरकार, उसने उसे चराने से मना कर दिया.


अब वह फिर से पूरे दिन घर पर रहने लगी. कुछ समय बीता, तो उसने दो बच्चों को जन्म दिया – हिरमिट और खिरमिट. अब तो पड़ोसियों की और आफ़त आ गई, क्योंकि चारकौड़ी के साथ हिरमिट और खिरमिट भी उन्हें तंग करने लगे. बूढ़ा आदमी और बूढ़ी दाई परेशान हो गए और उन्होंने चारकौड़ी को उसके बच्चों सहित जंगल में छोड़ दिया.


जंगल में चारकौड़ी अपने बच्चों के साथ मज़े से दिन गुजारने लगी. वे दिन भर जंगल में घूमते और फूल, पत्ते खाते और रात में किसी पेड़ के नीचे सो जाते. इसी तरह कुछ दिन बीते.


एक दिन एक बाघिन ने उन्हें जंगल में देख लिया और उसके मुँह से लार टपकने लगी. वह हिरमिट और खिरमिट को चट कर जाना चाहती थी. चारकौड़ी समझ गई कि बाघिन का इरादा क्या है? वह डर से कांप गई, फिर अपने बच्चों की खातिर हिम्मत कर बाघिन के पास गई और बोली, “प्रणाम दीदी!”


चारकौड़ी के मुँह से अपने लिए “दीदी” का संबोधन सुन बाघिन अचंभे में पड़ गई. वह सोचने लगी कि इसने “दीदी” कह दिया, अब इसके बच्चों को कैसे खाऊं?


उसने चारकौड़ी से पूछा, “कहाँ रहती हो?”


“रहने की कोई जगह नहीं है दीदी.” चारकौड़ी बोली.


“चल मेरे साथ. मेरी मांद के बगल की मांद खाली है. वहीं रहना.” बाघिन बोली.


चारकौड़ी हिरमिट और खिरमिट को लेकर बाघिन के साथ मांद में चली आई. वह समझ गई थी कि बाघिन उसके बच्चों को नहीं खायेगी, क्योंकि उसने उसे “दीदी” कहा है.


वह अपने बच्चों के साथ बाघिन की मांद के पास वाली मांद में ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगी. लेकिन वह सतर्क रहा करती थी, ना जाने कब बाघिन का मन बदल जाए. कुछ दिनों बाद बाघिन ने बच्चे दिए : एक-कांरा और दू- कांरा. बच्चे होने के बाद से वह शिकार पर नहीं जा पा रही थी. अब भूख के कारण वह बकरी के बच्चों को खाने की योजना बनाने लगी.


चारकौड़ी ने बाघिन की आँखों को पढ़ लिया था. वह बार-बार उसे ‘दीदी’ पुकारती, ताकि उसका मन बदल जाए. कुछ देर के लिए बाघिन का मन पिघलता भी, पर बाद में भूख हावी होती, तो वो फिर उसके बच्चों को खाने के लिए लालयित हो जाती,


एक शाम उसने चारकौड़ी से कहा, “तुम तीनों अब से हमारे साथ सोया करो. बच्चे ख़ुश होंगे.”


चारकौड़ी ने ना-नुकुर की, तो बाघिन बोली, “तीनों न सही, अगर खिरमिट या हिरमिट में से किसी एक को भेज दो, तो….”


चारकौड़ी चिंतित हो गई. अपनी माँ को चिंतित देख खिरमिट बोला, “माँ, मैं आज रात बाघिन की मांद में सोऊंगा और तू मेरी चिंता मर करना. मैं सुबह सही-सलामत आऊंगा.”

उस रात खिरमिट बाघिन की मांद में पहुँचा और बोला, “मौसी मैं आ गया.


उसे आया देख बाघिन बहुत ख़ुश हुई और बोली, “एक किनारे जाकर सो जा.”

खिरमिट एक किनारे जाकर सो गया. बाघिन उसे देखती रही और उसे खाने के बारे में सोचती रही. कुछ ही देर में उसे नींद आ गई और वह सो गई. लेकिन डर के मारे खिरमिट को नींद नहीं आई थी. आधी रात वह उठा और बाघिन के पास गया. देखा, वह गहरी नींद में सो रही है. उसने उसके बच्चे एक-कांरा को उठाया और अपनी जगह सुलाकर उसकी जगह लेट गया.


रात और गहराई, तो बाघिन उठी और एक-कांरा को खिरमिट समझकर खा गई और अपनी जगह आकर सो गई.


सुबह होने पर खिरमिट बाघिन को जगाते हुए बोला, “मौसी मैं जा रहा हूँ.”


उसे सही-सलामत देख बाघिन चौंक गई. उसे समझ नहीं आया कि रात वह किसे खा गई है. उसने अपने बच्चों को देखा, तो उसे एक-कांरा दिखाई नहीं दिया. वह गुस्से से तिलमिला उठी. लेकिन, उस समय गुस्सा दबाकर बोली, “ठीक है जा, लेकिन रात को सोने के लिए आ जाना.”


उस रात जब खिरमिट सोने के लिए बाघिन की मांद में पहुँचा, तो देखा कि बाघिन दू-कांरा को अपनी पूंछ से लपेटकर सोई है.


वह सोच में पड़ गया कि अब ख़ुद को बचाने के लिए रात में क्या करूं?


बाघिन के कहने पर वह एक किनारे जाकर सो गया. इस बार भी वह सोया नहीं. बाघिन के सोने के बाद वह मांद से बाहर आया और इधर-उधर देखने लगा. उसे एक बड़ा सा खीरा दिखाई पड़ा. वह खीरे को अपने स्थान पर रखकर अपनी माँ के पास आ गया.


रात में बाघिन ने उसकी जगह खीरा खा लिया. सुबह होने पर खिरमिट बाघिन की मांद में गया और बोला, “मौसी मैं जा रहा हूँ.

उसे फिर से जीवित देख बाघिन आश्चर्य में पड़ गई. वह चला गया और बाघिन उसे देख सोचती रह गई कि रात में मैंने इसकी जगह क्या खा लिया? पास ही दू-कांरा सो रहा था. कुछ देर में बाघिन को खीरे की डकार आई और उसे समझ आया कि उसने खीरा खा लिया है. वह गुस्से से बिलबिला उठी.


इधर खिरमिट अपनी माँ के पास पहुँचा और उसे सारी बात बताते हुए बोला, “माँ, अब हमें यहाँ से भागना पड़ेगा. बाघिन हमें मार डालेगी.”


उसके बाद वे तीनों वहाँ नहीं रुके और जंगल की ओर भागने लगे. भागते-भागते वे बहुत थक चुके थे, लेकिन बाघिन के डर से उनके कदम रुक नहीं रहे थे. चारकौड़ी अपने बच्चों की हालत देख सोचने लगी कि बेचारों नन्हें बच्चों का क्या होगा?

काफ़ी दूर आ जाने के बाद वह खिरमिट और हिरमिट से बोली, “अब हमें कुछ देर आराम करना चाहिए. तुम दोनों भी तक गए होगे.”


खिरमिट बोला, “माँ बाघिन किसी भी समय यहाँ पहुँचती होगी. उसने हमें देख लिया, तो हमारे प्राण ले लेगी.”


ऐसे में हिरमिट ने सुझाया, “क्यों न हम किसी पेड़ पर जायें. बाघिन पेड़ पर चढ़ नहीं पायेगी और हम सुरक्षित रहेंगे.”


चारकौड़ी और खिरमिट को भी ये बात जम गई और वे तीनों एक पेड़ पर चढ़ गए.


उधर बाघिन खिरमिट को ढूंढते हुए उनकी मांद में पहुँची, लेकिन वहाँ उसे कोई नहीं दिखा. वह समझ गई कि तीनों भाग गए हैं. वह उनके कदमों के निशानों का पीछा करने लगी और कुछ ही देर में उस पेड़ के नीचे पहुँच गई, जहाँ चढ़कर वे तीनों आराम कर रहे थे.



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