आत्मसम्मान

आत्मसम्मान

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अरी ओ मुनिया कैसा है री तेरा लल्ला, बस साहब अभी भी बुखार से तप रहा है दवाई देकर सुला के आई हूँँ । शाम को फिर डाकटर को दिखाना है कि गर शाम तक बुखार ना उतरा तो सायद अस्पताल में मर्ती कराना होगा। तो आज काम पे काहे आई घर पे रह के लल्ला की देखभाल कर ना। साहब काम नहीं करेंगे तो खाऐंगे कहाँ से लल्ला की दवा बापू भी तो बीमार रहते हैं, मर्द तो रहा नहीं जो कमा के खिला देगा। तू उसकी चिंता मती करे हम जो हैं जा तू घर जा सकेगी और सुन राशन तेरे घर शाम तक पहुँच जाऐगा ले कुछ पैसे भी लेती जा। बहुत -बहुत सुक्रिया साहब आप बहुत दयालु हैं आप का करज कैसन उतारेंगे। वो कोई बात नहीं बस तुम रात को लल्ला को सुला के आ जाईओ करज उतर जाऐगा।..... तड़ाक ...इतनी ज़ोर से आवाज़ हुई ..सेठ के गाल पर मुनिया की ऊँगलियों के निशान, सब का ध्यान एकदम इधर गया क्या हो गया। ओए सेठ मेहनत की है ज़मीर नहीं बेचा अपना भूखे मर जाऐंगे लेकिन जीऐंगे आत्मसम्मान के साथ ये रहे तेरे ₹ और रख लियो अपना रासन नहीं चाहिए।



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