काश, वह अपनी मां मानवता की ओर समय से ही लौट जाता। किंतु अब देर हो चुकी थी......बहुत देर।
दुनिया की हर भाषा मेरी ग़ुलाम कि उसको अर्थ देने वाले अक्षर मेरी मुट्ठी से निकले .... मेरे पास
और सभी बाज और चील अपने भोजन की तलाश में जंगल की ओर निकल पड़े।
और ऑटो रिक्शा यू टर्न लेकर सुकृति के घर की ओर चल पड़ा।
हम जैसे बड़े होते है, वैसे वैसे हमारा शारीरिक रूप, मानसिक रूप से विकास होता है
सत्य की होती विजय सदा, असत्य की पराजय निश्चित है।