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कितना...
कितना बेगैरत है...
कितना...
“
कितना बेगैरत है ये ज़माना
नहीं चाहता कभी सुनना फ़साना,
जख्मी दिल लेकर लिखा स्याही से कल रात,
पर अब नहीं है इच्छा, इसे जमाने को सुनना।
”
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