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नगमा..….. ये...

नगमा..….. ये जो प्यार का है, गुग-गुनाऊँगी हर रोज़, तू बस इशारों भारी आहट देना, छुपी चली आऊँगी हर रोज़। माना, कि शमा में लौह कम होगी उस वक़्त, पर मन में जल उठी चिंगारियाँ ही काफी होंगी उस रोज़।

By Rakshita Haripushpa
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