बचपन बह जाता न जाने, कब अहं की धार में, बचपन बह जाता न जाने, कब अहं की धार में,
कौन है वो न जानूँ में, बस, उसको ईश्वर की भेंट मानूँ में। कौन है वो न जानूँ में, बस, उसको ईश्वर की भेंट मानूँ में।
कुछ परिजन के सुरमा होने से कुछ पल ही बल मिलता, कुछ परिजन के सुरमा होने से कुछ पल ही बल मिलता,