नहीं फ़िक्र है कहाँ है जाना बस सीखा है बढ़ते जाना गिरती हूँ पर गिरी नहीं हूँ नहीं फ़िक्र है कहाँ है जाना बस सीखा है बढ़ते जाना गिरती हूँ पर गिरी नहीं हू...
जिस तरह नदी अपनी राह पर निरंतर बढ़ती जाती है, कवियत्री भी अपने सपनों की तरफ बढ़ रही हैं। जिस तरह नदी अपनी राह पर निरंतर बढ़ती जाती है, कवियत्री भी अपने सपनों की तरफ बढ़ रह...