ओह ! धरा आज वसंत में सबके मन को कितना मोह रही है ना। ओह ! धरा आज वसंत में सबके मन को कितना मोह रही है ना।
पुष्प सुरभित सुगन्धित विधा गीतिका । लो चली हो व्यवस्थित विधा गीतिका ।। पुष्प सुरभित सुगन्धित विधा गीतिका । लो चली हो व्यवस्थित विधा गीतिका ।।