लगकर गले चल रही हैं ऐसे मानों अपना ही घर समझा है मुझे। लगकर गले चल रही हैं ऐसे मानों अपना ही घर समझा है मुझे।
कुछ खवाब जो कांच से नाज़ुक थे हर तरफ टूट कर बिखर गए बहुत चाहा के तेरा जिक्र भी न आये लबों पर पर... कुछ खवाब जो कांच से नाज़ुक थे हर तरफ टूट कर बिखर गए बहुत चाहा के तेरा जिक्र ...