रिश्तों की पोटली में खिले है हम रिश्तों की पोटली में खिले है हम
उसके अनुरक्त नेत्र उसके उदग्र-उत्सुक कुचाग्र उसकी देह की चकित धूप उसके अनुरक्त नेत्र उसके उदग्र-उत्सुक कुचाग्र उसकी देह की चकित धूप
मृदुलता आदर और प्यार से सदा अपनी बातें कहे मृदुलता आदर और प्यार से सदा अपनी बातें कहे