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Sidhant Setu

Others

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Sidhant Setu

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ज़हर की बू

ज़हर की बू

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"ऐ सुनो

तुम्हारे जैसा कोई नहीं हो सकता

नहीं बिल्कुल भी नहीं

तुम्हें पता है तुम

कितनी खूबसूरत हो

कितना अच्छा बोलती हो

कितनी बेबाक हो

और झल्ली भी

पसंद हो शायद मुझे "


क्या यही बातें दिमाग में चल रही ?

खुद में हँसना खुशनुमा लग रहा होगा ?

सुनो! हो गया न फिर से प्यार

टूट रहा है न दिल फिर से

बिलखने लगे हो ना फिर से

पसंद नही आती ना खुद की हँसी अब

कैसा लग रहा तुम्हें ?

वैसा जैसा कि मानो ज़हर घोल दिया हो

किसीने तुम्हारे आस-पास , हवाओं में

तुम्हारे दिलो -दिमाग में ,

तो क्या करना चाहोगे ?

कोई विकल्प ढूंढ़ी है?

जैसे की उसे जाहिर करोगे की तुम उसे ज़रा सा भी घास नही डालते

उसके सामने दूसरी लड़कियों की बात छेड़ोगे

तूममें चिड़चिड़ापन आने लगेगा

उससे हर बात पे लड़ पड़ोगे क्योंकि तुम्हे लगता है ऐसा करने से

कम-ज़-कम तुम्हारी बातें तो होंगी


बहुत कुछ चलता रहता है अब दिमाग में

किधर जाना है कहाँ बैठना है

कैसे हँसना है कितना हँसना है

की कैसे अच्छा दिखूंगा उसके सामने

लाख कोशिशों के बाद भी

करीब नहीं आ रही ना तुम्हारे ?

अब लग रहा होगा की

काश मामूली सा ही बैठा रहता अगर

तो शायद बात बन सकती थी ।


जो भी हो

एक अंतिम बार तकिये को जकड़ो

उससे बातें करो

फिर अपना बक्सा उठाओ

शीशे में देखो

खुद को लगाओ एक तमाचा

तीन-चार बार झल्ला उठो

और चुप चाप निकल जाओ अपने शहर ।


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