यथार्थ
यथार्थ
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जिन्दगी के हर दुःख को यारों, हँस के पीना पड़ता है
मरने से कुछ हासिल ना होगा, संघर्ष तो करना पड़ता है।।
रिश्तों को संभाल के रखना, समाज की अपने आदत है
सुखी जीवन स्वार्थी ज़ीता, करने वाला गालियाँ खाता है।।
कर्मवीर जो मेहनत करता, खाली कभी ना रहता है
सारे निकम्मे प्रशंसा पाते, कर्मठ कटाक्ष को सहता है।।
झूठा, छलिया जाल बिछा, सम्मान हर जगह पर पाता है
ईमानदार सदा खड़ा देखता, बेईमान शान से रहता है।।
दुनिया का दस्तूर बड़ा, ना ज़िदों को जीने देता है
मुर्दों पर है, फूल चढ़ाता जीते जी ना नमस्कार तक करता है।।
