वापस आ जाओ
वापस आ जाओ
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वापस आ जाओ
यहीं तुम्हारे भीतर से प्रस्फुटित होगा संगीत
मैं तुम्हारे बनाये चित्र, तुम्हारे गाये गीत तुम तक पहुँचा दूँगा।
वो ऊपर हवा में तिरती टिटिहरी भी वापस लौट आती है
अपनी ध्वनि और पंखों के साथ।
अपनी माँ के कोख में बैठे उस शिशु की तलाश में
तुम सुख तक पहुँचोगे।
मैं जा रहा हूँ तुम्हारे मित्रों को बुलाने जिनके लिए
तुमने गढ़े मन्दिर, मूर्तियाँ, शिलाएँ।
खुला आकाश, गूँजते दरवाज़े, गिलहरी की तान तुम्हें पुकार रहे हैं।
वापस लौट आना हार जाना नहीं है -
वो उम्मीद है जो तुमसे बहकर चलेगी और सब हरा भरा कर देगी।
