सूनापन
सूनापन
माघ महीने की सुहानी धूप,
घर के बरामदे में बैठा मैं ।
निहार रहा हूँ
लंबी पत्तियों बाला वृक्ष
और उस पर महकते लाल फूल ।
एक नन्ही ,पीली भूरी चिड़िया ,
एक डाल से दूसरी पर फुदकती,
लंबी चोंच से फूलों को गुदगुदाती
ज़रा सी आहट पर चौकन्नी होती ,
पंख फड़फड़ाती, फुर्र से उड़ जाती ।
हल्की सी आहट ,
झाड़ियों में छिपी काली बिल्ली ।
खड़कन से चिड़िया चौकन्नी ,
दाएँ-बाएँ गर्दन घुमाई ,
पंख फड़फड़ाए आकाश में उड़ ली ।
चिड़िया की अठखेलियों की रिक्तता
से घिर आए मन के सूनेपन में
याद आते हैं वह गुज़रे दिन ,
जब रिश्ते गुनगुनी धूप
कि तरह सहला जाते थे ।
तब न दूरदर्शन था
न इतने साधन और न इंटरनेट
पर इन अभावों के बीच भी
मन नहीं इतने रीते होते थे ।।
एक अंधी दौड़
दूसरों को गिराकर,
स्वयं को उठाने की होड़ ।
चेहरा एक पर अनेक रूप,
माघ महीने की सुहानी धूप ।
प्रतीक्षा में हूँ कि पीली भूरी चिड़िया
उड़ती हुई पुन: आयेगी,
हिलते लाल फूलों को
लंबी चोंच से पुनः गुदगुदाएंगी
तब टूटते रिश्तों का संत्रास,
ऊपर उठने की प्रतिद्वंद्विता में
इंसानों के बीच,
बढ़ती दूरियों का अहसास,
शायद कम हो जाएगा
मन का सूनापन ,
कुछ पल को ही सही
मिट जाएगा ।
सिर्फ़ और बस सिर्फ़ होंगे
वृक्ष, चिड़िया और लाल फूल
और माघ महीने की सुहानी धूप ।।
