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Aapki Kavyatri

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Aapki Kavyatri

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स्त्री

स्त्री

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 दुर्गा भी है वो काली भी है कभी अन्नपूर्णा तो कभी वैशाली भी है 

वो मां भी हे तो मासी भी है, कभी शिक्षिका भी तो कभी झांसी भी है


 कभी रानी पदमवाती सा साहस उसमे है तो कभी

 हाड़ी की रानी सी कर्तव्यनिष्ट तो कभी काशी सी शांत भी है


वो जल की शांत धारा तो कभी समुंद्र का तूफान भी है

वो फूल सी कोमल भी तो कभी पत्थर सी कठोर भी है 


 थकना ,हारना व डरना ना कभी जिसने सीखा 

जो टूटी हिम्मत को जोड़ दे ऐसी वो जादूगरनी भी है 


उसे रोज सवेरे खाना कपड़े व बच्चो को जगाना है तो

फिर बच्चो को पढ़ना व शाम के खाने में भी लग जाना है 


मैं ठीक हूं यही कहना है हर बार और 

कभी अपनी परेशानी जताना न है 


अपनी दिनचर्या में सबको शामिल कर खुद को भूल जाना है 

साड़ी से खुदको सजाना पर कभी खुदको निहारना भूल जाना हे 


जो अपनो के लिए व्यस्तता में खोकर खुद को भूल जाती है

सम्मान करे हम आज उसका जिसने इतना साथ दिया है 


अपने सपनो को परे रख हमारे सपनो को प्रकाश दिया है 

आओ सम्मान करे उस स्त्री का जिसने इतना साथ दिया है।

                



এই বিষয়বস্তু রেট
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