स्नेह दीप
स्नेह दीप
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जगमग सख्यभाव होवे,
मिले जो स्नेह दीप।
खद्योत प्रकासा सखियाँ,
लौ जगे अंतरीप॥
होय पूजा गृह उजास ,
ऊर्जित मंदिर मम।
उजले हों भाव हिय के,
मन का हरे ये तम॥
दीप की सुंदरता तब,
उज्ज्वल होय अन्तस।
सद्भाव की अखंड ज्योति ,
जल रही प्रचेतस॥
