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Purushottam Das

Others

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Purushottam Das

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समय के टुकड़े

समय के टुकड़े

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यार कहाँ रहते हो, आते हो और समय नहीं देते हो 

भूल गये हो हमें या खुद में सिमट गए हो... 


सब्जीवाले से मोल-तौल करता मैं 

हाथ में झोली और कुछ रुपये जेब में 


तंद्रा लौटी मेरी मित्र से हँसकर बात हुई 

वाजिब सवाल लेकिन भीतर घर कर चुका था 


सरकारी रुपयों के हिसाब से आय आती मेरी 

लेकिन मेरे समय के हिसाब में पक्का न था 


बहुत मिन्नतों के बाद मिलने पर छुट्टी तो मिली थी 

लेकिन शर्त के साथ थी लौट आनी है पाँचवें दिन 


आयकर की फाइलिंग की डेट मुहाने पर आ गयी थी 

बाथरूम का नल पिछले महीने से ठप ठपा रहा था 


गाँव की समिति भंग होने की कगार पर थी बिल्कुल 

सुधी जनों के सुध न लेने पर चर्चाओं का बाजार गर्म था 


घर में अलग आर पार था पत्नी की त्यौरियां चढ़ी थी 

कब से मायके नहीं गई थी कौन सुनता है उसकी 


मुहल्ले वालों ने तय करवा लिया था पिछले दफे 

कि पूजा है, आओगे तो तंग गलियों को चौड़ा करेंगे 


आखिरी तारीख का अल्टीमेटम वकील साहब थमा रखे थे 

बेटी की प्रतियोगिता का फॉर्म भरने का भी अंतिम ही मौका था 


माँ की तबीयत नासाज थी पंद्रहियां बीतने भर को था 

उलाहना यह थी कि वह जिये या मरे मुझे फिक्र नहीं है  


कुछ फर्लांग पर किसान के हवाले बाड़ी मेरी 

सब्जियों की क्यारियाँ लिए बाट जोह रही थी मेरी  


मैं टुकड़ों में बांटता समय को करके टुकड़े मेरे 

बैकलाॅग की फाइलों से फिर जीवन की चादर बुन रहा था। 



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