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स्मृतियाँ

स्मृतियाँ

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इतनी क्यों कष्टप्रद हैं तुम्हारी वो स्मृतियाँ
सासों के आवागमन पर अब बोझ सी लगती हैं 
सहेजना था जिसे वो टूट कर बिखर गया
रोकना था जिसे वो हाथों से फिसल गया
और मैं मौन आदि से अनादि तक
पहुँच पाने में स्वंय को तुम तक 
इतना असमर्थ इतना बेबस पाती हूँ 
नींद से कोसों दूर रहकर 
जो सबक रात भर दोहराती हूँ
कह दूँ या ना कहूँ के जालों में 
अक्सर उलझ कर रह जाती हूँ
स्मृतियाँ पोंछ दूँ या निशानियाँ मिटा दूँ
कुछ तो ऐसा हो जो गुजरा है वो बीत भी जाये
आँखे बँद करूँ और बचपन वाली नींद आ जाये

 
 
 
 
 


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