शहादत
शहादत


वो!
वो लड़ते- लड़ते वहीं शहीद हो गया,
वो देश के स्वाभिमान को बचाने में लगा हुआ था,
और...
एक पल में ही उसका हंसता खेलता परिवार बदनसीब हो गया,
शहादत!
हां! शहादत कहतेहैंं उसे जो वो कर गया,
कुछ होंगे जो पहचान में आ रहे होंगे,
कुछ का तो पूरा बदन उन दरिंदो ने गोलियों से छलनी कर दिया,
कुछ होंगे जो खून से लथपथ होंगे,
कुछ का तो पूरा बदन उस आग में झुलस कर देश की मिटटी में सन गया,
शहादत!
हां शहादत कहतेहैं उस जो वो कर गया!
उस वीर के घर का क्या मंज़र होगा?
कैसा उसे तिरंगे में लिपटा देख उसके घर पर बह रहा वो आंसुओ का समंदर होगा?
बूढ़े मां- बाप......
उनके दिलों पर क्या बीत रही होगी?
और उसकी पत्नी....
उस बेचारी की तो अब तक मांग भी सुनी कर दी गई होगी!
उस बहन की तो कुछ पल के लिए जैसे ज़िन्दगी ही थम गई होगी!
और छोटा भाई.....
उसके कंधों पर अब घर की सारी ज़िम्मेदारी होगी कर दी गई होगी!
उसके वो छोटे से मासूम बच्चे.....
इतनी कम उम्र में उनकी मौत से मुलाकात भी हो गईं होगी!
मंज़र आसुंओ का कुछ ऐसा होगा जैसे उनके पैरों तले जमीन ही खिसक गई होगी!
बहन...जिसके लिए उसने कुछ तोहफ़ा लाने का वादा किया था,
जल्दी लौटकर आने का जिसने सबसे वादा किया होगा,
आपनी बात पर कायम... जैसा कह गया था कुछ वैसा ही वो कर आया,
बहन के लिए फक्र करने के खातिर वो खुद ही तिरंगे में लिपट लाया,
सबसे जैसा की वो बोल गया था.. बस इस बार पिछली बार से जल्दी लौट आया,
शहादत!
शहादत कहतेहैं उसे जो वो कर आया!
लेकिन इस बार कुछ फर्क था....
फर्क ये की इस बार वो अपनी वर्दी में नहीं था,
वर्दी किसी और के हाथो में थी और वो खुद पाख़ तिरंगे में लिपटा हुआ अपने चार साथियों के कंधो पर घर आया,
लेकिन इस बार वो गोद में अपने उन छोटे से बच्चों को ना उठा पाया,
इस बार ना वो किसी से कुछ बोला और ना बतला पाया,
शहादत कहते कंधा बच्चे हैंं उस जो वो कर आया!
ऐसा ही कुछ उन सभी वीरों के घरों का मंज़र होगा,
दुख में बह रहे उन आंसुओं की कोई सीमा नहीं होगी लेकिन सभी को उसपर भरपूर गर्व होगा!