सफ़र
सफ़र
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जिन्दगी का
सफ़र भी
अजीब होता है
हर रात
देखती है
एक सपना
और
सवेरा होते ही
निकल पडती है
उसे सच करने
और
शाम होते ही
फिर बुनने लगती है
एक नया सपना
