सब नश्वर है
सब नश्वर है
एक ही सबका है, ईश्वर
हिन्दू ,मुश्लिम, सिख, ईसाई
अनेक धर्मों में बट गया जन,फिर भी मन में है, भटकन ||
यथार्थ जीवन का दर्पण है
वेद पुराण में वर्णन है
समाहित कर जग कल्याण को
गीता जग में उपस्थित है, मन में फिर क्यूँ भटकन है ||
कभी खिलखिला हँसता जब
औंरों को दुःख देकर
कभी असहाय बन
खुद रोता तड़प-तड़प कर, कृत्य अपने स्मरण कर ||
रात्रि गुजारता करवटें बदल
कभी सोता मस्त मलंग
जीवन भर रहा इस उलझन
क्या कमाया जिन्दगी भर, सब कुछ, जग में है नश्वर ||
क्या करूँ मैं, क्या कहूँ मैं
क्या सोचे ये चंचल मन
आत्मचिंतन को छोड़ के मैं
अर्जित करने मान सम्मान और केवल धन ||
जीवन का दस्तूर भुला
सच से अपना पीछा छुड़ा
उस ईश्वर का नाम भुला
भुला बैठा मैं सुख की धुन, फिर भी मन में है भटकन ||