रूबरू
रूबरू
खुद को खुद से ही रूबरू कर राहा हूं
खुद को खुद से ही रूबरू कर राहा हूं।
क्या बोलूं और किसे बोलूं की अब खुद में ही खुद को ढूंढ राहा हूं।
ना जाने अब किसको बोलूं की अब हमारी भी हिस्से की खुशी भी हम से ही छीनी जा रही हैं ।
बस इतना ही कहूंगा अब की खुद को खुद से ही दूर कर राहा हूं।
खुद को खुद में ही तलाश रहा हूं,
खुद को खुद में ही तलाश रहा हूं।
ऐ ज़िंदगी थोड़ा सा तो धीरे चल, मैं खुद ही तेरे रूबरू हो रहा हूं।
तेरी यादों को अब सीने में सजो रखा है, बस अब खुद को ही तुझमें तलाश रहा हूं।
कैसे बोलूं अब की तेरे इश्क की चाहा में, मैं खुद ही बे आबरू हो रहा हूं।
अपने हिस्से की खुशी भी तेरे हिस्से में दिए जा रहा हूं।
बस तेरे हर दुखों को अब अपने ही अंदर लिए जा रहा हूं।
खुद को खुद से ही रूबरू कर रहा हूं
खुद को खुद से ही रूबरू कर रहा हूं।
क्या बोलूं और किसे बोलूं की अब खुद में ही खुद को ढूंढ रहा हूं।
तुझे हर पल अपने में होने का एहसास कर रहा हूं।
तुझे हर पल अपने में होने का एहसास कर रहा हूं।
बस उसी हर पल में ही खुद को बेपनाह हो कर खुद को ही तलाश रहा हूं।
बस खुद को खुद से ही रूबरू कर रहा हूं।
बस खुद को खुद से ही रूबरू कर रहा हूं।