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Nikhil Srivastava

Others

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Nikhil Srivastava

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पन्नों

पन्नों

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कुछ उधड़े पन्नो सी जिंदगी हैं

ना जाने अब और कितना बिखरेंगे हम।

अब उन्हीं उधड़े पन्नो को समेटते समेटते

ना जाने कितना और सिमटेंगे हम।

कुछ ख्वाइशे लिखी थी हमने उन पन्नो में जिंदगी जीने के लिए।

अब उन कुछ उधड़ी हुई ख्वाइशों को फिर से उन्हीं पन्नो में कैसे समेटेंगे हम।

कुछ तेरे भी जज़्बात लिख रखा था हमने उन पन्नों में,

अब उन उघड़े पन्नो से तेरे उन जज्बातों को कैसे वापस लाएंगे हम।

कुछ और भी हमारी प्यार भरी यादें थी उन पन्नो में ,

जिसको बड़ी सहजता से हमने सजो रखा था उन पन्नो में।

अब कैसे उन उघड़े और बिखरे हुए पन्नो से फिर कैसे उन यादों को वापस ला पाएंगे हम।

कुछ उघड़े पन्नो सी जिंदगी हैं,

ना जाने अब कितना बिखरेंगे हम।

अब उन उघड़े पन्नो को समेटते समेटते ना जाने कितना और सिमटेंगे हम।



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